
मधु “मधुमन” (कवयित्री)

गीत मन के द्वार पे साँझ सवेरे
आन धमकते हैं घर मेरे
लम्हों के पंछी बहुतेरे
रोज़ लगाया करते फेरे
मन के—
कुछ लम्हें निश्छल बचपन के
मनमौजी मतवालेपन के
प्यार मुहब्बत अपनेपन के
बीते संग जो भाई बहन के
जितना याद करूँ मैं इनको
उतना भीगें नैना मेरे
मन के—
कुछ लम्हे उस घर आँगन के
महके-महके से गुलशन के
तार जुड़े थे जिससे मन के
रिश्तों के नाज़ुक बंधन के
हर लम्हा लगते थे जिसमें
त्योहारों ख़ुशियों के डेरे
मन के—
साथ समय के उड़ गए पल वो
कितनी जल्दी गए निकल वो
हाथ से रेत से गए फिसल वो
करते हैं पर अब भी छल वो
हर पल यूँ लगता है जैसे
दस्तक दें वो दिल पर मेरे
मन के ————–।
मधुमन
मेरी रचना शेयर करने के लिए नीलम पांडेय जी का हार्दिक आभार ! ????????
मेरी रचना शेयर करने के लिए नीलम पांडेय जी का हार्दिक आभार ! ????????