
-डाँ आदित्य कुमार गुप्ता

किताबें रखती हैं श्रृंखला
विचारों की जीवित
संस्कृति का सतत् प्रवाह
रहता प्रवाहमान इनमें ।
संस्कृति है प्राण मानवीय चेतना की
संस्कृति देती है संस्कार
जीवन का परिष्कार
देश और धर्म की आन-बान
राष्ट्रीयता की जान
समय की पहचान
बसती है इनमें ।
संस्कृति का पाठ
जीवित रहता, परिपुष्ट हो
किताबों मेंं लेता आयाम
ज्ञान चेतना का परिस्फुरण
किताबों में फूलता- फलता।
संस्कृति का वटवृक्ष
छाया में आगे बढ़ता
मानव समाज का जीवन
मानव की रीतियाँ महान
सौंधती हैं किततबों में।
संस्कृति- सभ्यता की गंध
आचरण की पवित्रता
समाज की खुशहाली
जीवन के संस्कार
जीवन के उत्थान पतन का
अद्भुत इतिहास
सब शोभायमान
सब दृश्यमान हैं किताबों में ।
डाँ आदित्य कुमार गुप्ता
बी-38 मोती नगर विस्तार बोरखेड़़ा
कोटा ।
संस्कृति और सभ्यता को संजोकर रखती हैं पुस्तकें,