-विष्णुदेव मंडल-

बिहार के सारण जिले में जहरीली शराब पीने से 24 जने की मौत और अपने सगे को खोने की वेदना, रोते परिवार, पति की मौत पर चीत्कार मारती पत्नियां, अपने बेटे को मौत के बाद छाती पिटती माताओं से जाकर पुछिए मुख्यमंत्री जी, जिनके परिवार जहरीली शराब पीने से असमय मौत के शिकार हो गये हैं।
सवाल शराबबंदी का नहीं है, सवाल यह उठ रहा है कि आखिर बिहार में शराबबंदी है तो शराब उपलब्ध कहाँ से हो रही है? विपक्ष की तो बात छोडिये आपके साथ सरकार चला रहे गठबंधन की घटक दल भी शराबबंदी पर सवाल उठा रहे हैं? ऐसे में शराबबंदी को सफल बनाने के बजाय विपक्षियों को धमकी देना लोकतंत्र में कितना जायज है, आखिर इस बात की चर्चा विधानसभा में क्यों नहीं होनी चाहिए। क्या विपक्ष की मांग गलत है ? क्या अवैध शराब के निर्माण और बिक्री से राज्य को राजस्व का नुकसान नहीं हो रहा है धन और जन दोनों खो रहे हैं आप?
यह सच है कि शराब बंदी लागू करने के समय भारतीय जनता पार्टी भी आपके साथ थी, और विपक्ष में राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव इस कानून का विरोध कर रहे थे लेकिन अब आप लालू यादव के साथ सरकार चला रहे हैं और विपक्ष में भारतीय जनता पार्टी है। बुधवार को राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने शराबबंदी पर सवाल उठाया कि बिहार में हर जगह शराब उपलब्ध है, शराबबंदी मानसिक दिवालियापन है?
उल्लेखनीय है कि शराबबंदी से आखिर किसको फायदा हो रहा है। आप शराब माफियाओं के साथ क्यों खड़े हैं। शराब पीने वाल,े ताड़ी पीने वाले जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन्हें जेल में डालने से क्या शराबबंदी को सफल माना जाए?
सरकार आप चला रहे हैं, सिस्टम आपके हाथ में है, पुलिस आपके हाथ में है फिर भी यदि शराब हर घर हर जिले और मोहल्ले में उपलब्ध है तो नाकामी किसकी हैं। इसका जवाब बिहार का हर परिवार आपसे मांग रहा है। शराब से आर्थिक क्षति होती है, शराब से कई परिवार बिखर जाते हैं, शराब पीने से कानून व्यवस्था बिगड़ जाती हैं तो फिर शराब बिहार में जगह जगह उपलब्ध कैसे हो रही हैं अर्थात शराब बंदी आपने किया है तो जवाब भी आपको ही देने होंगे?
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के अनुसार पिछले 6 सालों में 1000 से भी ज्यादा लोग जहरीले शराब पीकर मौत के शिकार हो चुके हैं, लाखों गरीब और कमजोर तबके के लोग शराबबंदी के नियम के उल्लंघन करने के जुर्म में जेलों में बंद है फिर यह कैसी शराबबंदी है?
गौरतलब है कि 2005 में आप लालू यादव के शासन को जंगल राज बताकर चुनाव जीतकर सत्ता में आए थे। 2005 से 2015 तक बिहार में शराबबंदी नहीं थी उस वक्त बिहार में सुशासन की झलक मिलती थी। उस वक्त आपने बिहार को फर्श से अर्श तक पहुंचाए थे। चारों तरफ आपकी चर्चाएं हो रही थी।
उसी वक्त आपका नाम सुशासन बाबू रखा गया था चमचमाती सड़कें घरों में जलते बिजली के बल्ब, कानून व्यवस्था मुकम्मल होने के कारण ही आप सुशासन बाबू बने थे, जरा याद कीजिए 2010 से 2015 के चुनाव आपने अच्छी शासन व्यवस्था के नाम पर मुआवजा के तौर पर बिहार के लोगों से मांगे थे और आप को बिहारवासियों ने जमकर वोट और सेवा करने का मौका दिया। लेकिन 2013 में एनडीए से नाता तोड़ने के बाद से अबतक भटकाव मोड में चल रहे हैं और अपनी विश्वास खोते जा रहे हैं?
(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)
शराबबंदी एक ढोंग है एक ढकोसला है। इस से पीने वाले अवैध शराब को पीने के लिए मजबूर होते हैं और अपनी जान गंवा देते हैं। शराबबंदी बापू के नाम पर गुजरात में आजादी के बाद से ही है लेकिन पीने वालों को शराब मिल जाती है और इस शराब बंदी के चलते पुलिस और तस्कर कमाई करते हैं जबकि राज्य सरकार को इस से राजस्व का घाटा उठाना पड़ता है।
सरकार को जनता पर जबरदस्ती ऐसे निर्णय नहीं थोपने चाहिए।
जहां भी शराबबंदी है वहां माफिया की चांदी है। जो राजस्व सरकारी खजाने में जाना चाहिए वह माफिया के पास जाता है। इससे अन्य गैरकानूनी कामों को बढावा मिलता है।