सबके चेहरे जाने कैसे पढ़ लेती हैं !

-रचना त्रिपाठी-

rachna tripathi
रचना त्रिपाठी

व्यर्थ जल रही
बिजली
और पंखों का
स्विच
बार-बार
ऑफ कर देती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

घिसा हुआ साबुन
टूथ पेस्ट की
पिचकी हुई ट्यूब
डब्बे की तली से
लिपटा घी
सब न जाने
कैसे सोख लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

गैस चूल्हे पर
चढ़ी
दो-दो तीन-तीन
रोटियां
एक साथ
झटपट सेंक लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

आंधी-पानी की
गड़गड़ाहट
की आहट
मौसम के करवट
बदलते ही
कैसे भांप लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

छत पर टँगे
कपड़े
धान गेंहू की
पथार
अचार की गगरी
और साथ में
घर के
बड़े-बुर्जगों की
फटकार
सब एक साथ
समेट लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

देश-दुनिया की
ख़बर से बेख़बर
सुबह की चाय
अख़बार के साथ
नहीं पीती
फिर भी
सबके चेहरे
जाने कैसे पढ़ लेती हैं!

कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

गोबर-मिट्टी से
दिन-भर
लीप-पोत कर,
यहाँ-वहाँ पड़े
आरामतलबी के
शिकार
घरेलू वस्तुओं को
करीने से
सजा के
कच्चे मकानों में
पक्का घर
जाने कैसे बना लेती हैं!

सचमुच –
कम-अक्ल औरतें भी न
हद करती हैं।

(रचना त्रिपाठी)

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
1 year ago

औरतों में बुद्धि और विवेक शार्प होता है,,जरूरत होती है इसको मांजने की,इसी प्रतिभा को उजागर किया है कवियत्री रचना त्रिपाठी ने