– विवेक कुमार मिश्र-

एकदम से यह नई बात होगी कि
आप कुछ करें और कोई बात न हो
बात हो या न हो पर बात तो होगी
सभ्यता में आदमी बैठा ही है बात करने के लिए
कभी इस बात पर तो कभी उस बात पर बात
और बातों की इस गणना में
चाय अपने साथ रायसुमारी बनाती रहती
चाय है और चाय के रंग के साथ
सभ्यता की कहानियां हैं ….
चाय नये सिरे से
एक और आंच पर पक कर आ जाती
हर सुबह एक अलग ही चाय होती
एक सुबह का उजास के साथ स्वागत करते हुए
इस तरह आती कि …
चाय के मूल स्वाद के साथ साथ
एक नई चमक एक नई महक और रंग दे जाती है कि
चाय के साथ – आप अपनी गति लें सकें
चाय पर चल सकें ….
संसार को समझें और जीवन की तमाम
अटकलों के बीच किस खूबसूरती से
चाय उल्लास का प्याला थमा जाती कि
बस चाय देखते रहिए
और चाय पर कदम – दर – कदम
बढ़ाते हुए घूम आएं दुनिया….।
चाय की कहानियां और सभ्यता की बातें किताब संग चलती चलीं आ रही हैं । चाय के साथ होना , चाय पर चल पड़ना और चाय पीते हुए संसार की दृश्यता को देखना जहां एक जीवंत गतिविधि है वहीं अपने आप को जीवन से गहरे जोड़ने की प्रक्रिया का एक हिस्सा भी है । चाय पर यह किताब पाठकों को चाय के साथ एक दार्शनिक अनुभव संसार से जोड़ने का जहां काम करेगी वहीं अपने निकट यथार्थ को और और करीब ले जानने समझने के लिए अवसर भी उपलब्ध कराती जायेगी । चाय पीते हुए पुस्तक का साथ और कविताओं की जुगलबंदी नये सिरे से अपने को सोचने समझने के लिए स्पेस देती हैं ।