brahdishwar

डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)

तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक राजाराज चोल प्रथम ने करवाया था। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है। इसे पेरिय कोईल व अंग्रेजी में बिग टैम्पल के नाम से जाना जाता है। 2010 में इस मंदिर के निर्माण के एक हजार साल पूरे हुए। यह अपने समय की विश्व की विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इसी वजह से इसे यूनेस्को की वैश्विक विरासत का दर्जा प्राप्त है। इसका तेरह मंजिला भवन (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलों की संख्या विषम होती है।) की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है।

डॉ. पीएस विजयराघवन

यह कला की प्रत्येक शाखा- वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है जिसकी ऊंचाई ६६ मीटर की है और अपने आप में विश्व में सबसे ऊंचा गुम्बद माना जाता है। जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानतरू उसका भार 2200 मन (80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम के भीतर एक चैकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6  मीटर लंबी, 2.6  मीटर चैड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।

मंदिर निर्माण का इतिहास

राजा चोलन प्रथम के स्वप्न में इस मंदिर के निर्माण का आदेश हुआ और उन्होंने एक हजार साल पहले इस अद्भुत व विशिष्ट मंदिर के निर्माण का कार्य शुरू कराया। 1002 में राजा ने मंदिर का शिलान्यास किया था। शिव को समर्पित मंदिर का विशाल प्रांगण राजा-महाराजाओं के राज्याभिषेक का स्थल था। एक हजार साल से अधिक के अपने इतिहास में इस मंदिर ने छह भयावह भूकंप के झटकों का सामना किया है फिर भी इसे खरोंच तक नहीं आई। मंदिर के निर्माण में वास्तुशास्त्र और आगम का पूरा खयाल रखा गया। मंदिर के शिलालेख में कुंजार मल्लन राजराज पेरुंदासन का उल्लेख है जो इस मंदिर के शिल्पकार व वास्तुकार थे। मंदिर की परिधि भरतनाट्यम की कलाओं व मुद्राओं के 81 चित्र हैं। मंदिर के निर्माण के माप में एक अंगुल नाप का सहारा लिया गया है। यह विधि 4000 से 6000 साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता में जीवित थी। मंदिर में देवी की सन्निधि पांड्य राजाओं ने 13वीं सदी में बनवाई। विजय नगर शासकों ने सुब्रमण्यम व मराठा शासकों ने विनायक सन्निधि का निर्माण कराया। इस मंदिर का निर्माण एक दुर्ग के रूप में हुआ है जो नदी किनारे बसा है। यह वह मंदिर है अष्ठ दिग्पालक जिनको देवताओं का प्रहरी कहा जाता है कि प्रतिमाएं भी हैं।

अद्भुत भित्ति चित्र

गर्भगृह में भगवान शिव के विविध रूपों और मुद्राओं के अद्भुत भित्ति चित्र बने हैं। भगवान शिव को इन चित्रों में असुरों का नाश करते हुए दिखाया गया है। वे नृत्य मुद्रा में भी हैं और एक सफेद हाथी के जरिए एक भक्त को स्वर्ग भेजते हुए दिखाई देते हैं। इन चित्रों की पहचान 1940 में हुई थी। ये भित्ति चित्र चोल राजाओं के थे। नायक वंशज ने 400 साल पहले कुछ पेंटिंग उनके सियासी काल की बनवाकर यहां लगाई। मंदिर के अनुरक्षण ब्राह्मण पुजारियों के अलावा 1000 से अधिक का स्टाफ है। सितम्बर 2010 में मंदिर के निर्माण के एक हजार साल पूरे हुए। राज्य सरकार ने इसे बतौर उत्सव मनाया। वैश्विक विरासत होने की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक ने 1 अप्रेल 1954 में इस मंदिर पर 1000 रुपए का नोट जारी किया था। मंदिर की एक सहस्त्राब्दि पूरी होने पर आरबीआई ने पांच रुपए का विशेष सिक्का भी जारी किया। मंदिर की बनावट, वास्तु शिल्प व उस जमाने में निर्माण आभियांत्रिकी पर ढेरों साहित्य लिखे गए हैं। अंग्रेजी चैनलों में तो इस मंदिर के निर्माण को लेकर वृत्त चित्र भी बनाया है। यह मंदिर पूरे भारत की शान है। हजारों श्रद्धालु इसके दर्शनार्थ आते हैं।

(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

पुरी के जगन्नाथ मंदिर की भी छाया धरती पर नहीं पड़ती है, यह भारतीय स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है तथा मंदिर के गुंबज पर पक्षी नहीं बैठते हैं। लेकिन पिछले दिनों जगन्नाथ मंदिर के ऊपर एक गिद्ध के बैठने समाचार मिले हैं। बृहदीश्वर मंदिर का सजीव चित्रण विद्वान लेखक ने किया है। प्राचीन मंदिर सनातन संस्कृति के उत्कृष्ट नमूने हैं,।आज के वैज्ञानिक युग में ऐसे भवनों का निर्माण लगभग असंभव सा है। शिल्पकारों ने छेनी हथौड़ी से मंदिर निर्माण में उच्च कोटि की कला का प्रदर्शन किया है लेकिन इसके पीछे मंदिर निर्माण के वास्तुकारों की कुशलता छिपी हुई है। ऐसी अमूल्य धरोहर को संजोकर कर रखना आधुनिक पीढ़ी की विशेष जिम्मेदारी है।