
ग़ज़ल
तोड़ डाला है मेरा सपना क्यूॅं।
लूट ली तुमने मेरी दुनिया क्यूॅं।।
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क्या सियासत भी इक तमाशा है।
फिर सियासत का ये तमाशा क्यूॅं।।
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जिसको हर पल में याद करता हूॅं।
भूल जाता है वो हमेशा क्यूॅं।।
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जिसने रोशन किया हो महलों को।
वो दीया रास्ते में जलता क्यूॅं।।
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जिनकी अपनी अलग ही दुनिया हो।
फिर वो देखें हमारी दुनिया क्यूॅं।।
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क्या समंदर ने बेरूख़ी बरती।
लौट आया पलट के दरिया क्यूॅं।।
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क्या ये सूरज भी है अमीरों का।
हम ग़रीबों को फिर ॲंधेरा क्यूॅं।।
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मैं तो गोशा नशीन हूॅं “अनवर”।
मेरे पीछे पड़ा ज़माना क्यूॅं।।
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शकूर अनवर
गोशा नशीन* एकांतवासी
9460851271