देखलो जान हाथों में है। तुम फ़क़त इक इशारा करो।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

जब सफ़र का इरादा करो।
पहले ख़ुद पर भरोसा करो।।
*
अब क़नाअत पे तकिया करो*।
मुफ़लिसी में गुज़ारा करो।।
*
ज़िंदगी फूल-बूटे नहीं।
दार की भी तमन्ना करो।।
*
इश्क़ बस का नहीं आपके।
और कोई तमाशा करो।।
*
ज़िंदगी को नई सम्त* दो।
शायरी से उजाला करो।।
*
देखलो जान हाथों में है।
तुम फ़क़त इक इशारा करो।।
*
डूबने का मज़ा आयेगा।
अपने ज़ख़्मों को गहरा करो।।
*
आरज़ी* हैं ये सब नफ़रतें।
इतना दिल भी न मैला करो।।
*
जिसमें ” अनवर” हसीं ख़्वाब हों।
ऐसी आबाद दुनिया करो।।
*

क़नाअत*संतोष,
तकिया करना*भरोसा करना,
मुफ़लिसी*ग़रीबी,
सम्त*दिशा,
आरज़ी*अस्थाई,

शकूर अनवर
9460851271

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Laxman singh
Laxman singh
2 years ago

वाह वाह लाजवाब बहुत खूब वाह