
-डॉ विवेक कुमार मिश्र-

(सह आचार्य – हिंदी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
14 सितंबर हिंदी दिवस । हिंदी का दिन । राष्ट्र भाषा और राजभाषा का दिन। यह दिवस हिंदी भाषा भाषी समाज के गर्व का दिन है । इस दिन को हिंदी सेवी हिंदी भाषा में कार्य करने वाले जहां अपने ढ़ंग से मनाते हैं और भाषा की शक्ति को याद करते हैं वहीं आमजन अपने जीवन व्यवहार में हिंदी को बरतते हुए हिंदी की सेवा कर रहा होता है। जब हिंदी भाषा और हिंदी समाज की बात की जाती है तो हम एक व्यापक जन समाज की बात कर रहे होते हैं। हिंदी का संसार बोली भाषा के समूह का संसार है। पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हिंदी का प्रसार उसके कवि लेखकों के रचनात्मक संसार से होता है। हिंदी का क्षेत्र और भाव संपदा व्यापक होने के कारण हिंदी भाषा को स्वाभाविक तौर पर इस देश की देश भाषा और जन भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। हिंदी भाषा भाषी समाज देश की धड़कन है जो पूरे देश पर एक तरह से अपना असर और आधार रखती है। हिंदी की क्षमता देश की सामाजिकता, समरसता और जीवन आधार की क्षमता है। हिंदी दिवस साल दर साल अपनी उपलब्धियों से हमें जागृत करता रहा है। हिंदी में होना और हिंदी का होना निश्चय ही गर्व की दुनिया को रचता है। हिंदी का होने के लिए सहजता का तार और छंद भी अपने साथ रखना होता है। हिंदी किसी तरह की फैशन शो या अपने आप को प्रस्तुत करने के लिए नहीं बल्कि हिंदी का जीवन संसार, अपने को हर हालात में जीने की ज़िद देता है, अभावों के बीच रहना सिखाता है और इतना ही नहीं हिंदी का कहलाना हकलाना नहीं होता बल्कि हिंदी का होना एक गर्व भरे संसार से जुड़ना होता है एक ऐसे वृहद संसार से जुड़ना होता जिसकी परिधि में व्यापक समाज आता है इतना व्यापक कि उसे देश ही कहा जाता है। हिंदी को जीना यानी देश को जीना होता है। देश राग से, अपनी आत्मसत्ता से सीधे तौर पर जुड़ने की इच्छा हिंदी की इच्छा बन जाती है।
हीनता बोध से निकलने की जरूरत
-हिंदी के प्रसार के लिए सबसे पहले हिंदी के व्यक्ति को हीनता बोध से निकलने की जरूरत है । लिफाफे पर अंग्रेजी में पता और भीतर सारा कुछ हिंदी में हो तो हिंदी की बात नहीं बनती । अंदर और बाहर एक साथ हिंदी को महसूस करने की जरूरत है।
– आज हिंदी की – बोर्ड पर , नेट , इंटरनेट के माध्यम से सशक्त भाषा के रूप में जहां अपने बोध से सामने आती है वहीं तकनीक पर भी खुल कर प्रयोग होने के कारण अपनी पहुंच देश दुनिया में बनाए हुए है।
हिंदी अपनी सहजता से अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर आगे बढ़ रही है
– हिंदी का रचनात्मक प्रयोग हिंदी की शक्ति को देश देशांतर में ले जा रहा है। कबीर, जायसी, सूर और तुलसी की सत्ता किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। वैसे ही आधुनिक कवि लेखक प्रेमचंद, प्रसाद , अज्ञेय, मुक्तिबोध भी देश भाषा के रंग में रंग कर पूरे देश की स्वीकृति बन जाती है। हिंदी अपनी सहजता से अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर आगे बढ़ रही है । रचनात्मक भाषा निरंतर भाषा को रचती और गढ़ती है , इससे भाषा की एकरूपता जहां खत्म होती है वहीं नवीनता भाषा को समय के साथ चलने की शक्ति देती है।
हिंदी जीवन की हर प्रक्रिया में अपने आदमी के साथ
– हिंदी गरीब , अमीर, आमजन फेरीवाले से, बाजार में अपने उत्पाद की बोली लगाने तक जीवन की हर प्रक्रिया में अपने आदमी के साथ होती है। मजदूर , किसान , व्यापारी , शिक्षक डॉक्टर , वकील , वैज्ञानिक , नौकरशाह से लेकर उच्च शिक्षित तक समान रूप से पढ़ी समझी और व्यवहार में उपलब्ध होने के कारण सफलता के रथ पर सवार होकर पूरी दुनिया की सैर कर रही है ।
अपना अस्तित्व बनाए हुए
– हिंदी घर से निकल कर पास पड़ोस पाठशाला, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय और बाजार से लेकर मेले और आधुनिक विशाल मेगा मार्ट तक अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। हिंदी कर्मवीर , कर्मशील लोगों की भाषा है । हिंदी की यह सत्ता किसी सत्ता के कारण नहीं अपितु उसकी सरलता , सहजता और जीवंतता के कारण मिली है।
भाषा की शक्ति
-हिंदी का प्रसार निश्चय ही बाजार की ताकत, हिंदी समाज की ताकत और उसके महान मध्यवर्ग की क्रय क्षमता के कारण है। हिंदी के विकास में हिंदी भाषी समाज की जनसंख्या, उसकी क्रय क्षमता और उसके द्वारा अपनी भाषा को लेकर जो विशेष राग है वह सब भाषा की शक्ति को व्यक्त करता है ।
– हिंदी तकनीक और विज्ञान की सामर्थ्य को भी अपने साथ अभिव्यक्त करते हुए आगे बढ़ रही है।
हिंदी को सब स्वीकार करते हैं
– हिंदी भाषा भाषी समाज आमजन / सामान्य आदमी की ताकत को प्रस्तुत करता है। यह अभिजन की, विशेष वर्ग की भाषा न होकर पूरे देश के आम आदमी को अपने भीतर अभिव्यक्त करने के कारण हिंदी को सब स्वीकार करते हैं ।
समाचारपत्रों की सबसे बड़ी भूमिका
– हिंदी के विकास में, प्रचार – प्रसार में, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म और नेट सबकी भूमिका है पर यहीं यह कहना जरूरी है कि समाचारपत्रों ने हिंदी को स्थानीयता के साथ उसके मानक रूप को जीवित करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है और यह कार्य हिंदी के समाचार पत्रों ने सिद्धांत और व्यवहार दोनों रूपों में किया है।
देश की ताकत है
हिंदी की गति हिंदी भाषा भाषी समाज की गति का प्रतिफल है और यह इस देश की ताकत है। भाषा आदमी को उसकी पूरी स्मृति के साथ, उसके स्वप्न के साथ और उसको उसके साथ सामने रखती है। जिसमें मनुष्य अपने अस्तित्व को उद्घाटित करता है। भाषा हमें रचने गढ़ने व पोषित करने का काम करती है। भाषा के रखरखाव के लिए किसी भवन की जरूरत नहीं होती। वह तो जीवित मनुष्य के परस्पर संवाद से जन्म लेती है। पल्लवित होती है। भाषा के इतिहास में भाषाओं के बचे रहने का इतिहास इस रूप में दर्ज होता है कि वह भाषा किसके किस संदर्भ में और क्यों संवाद करती है। उसकी संवाद शक्ति किस रूप में है उसका स्वरूप आदेशात्मक है या व्यवहार के निकट के रूप में है। या आने वाली भाषा भर है जिसे कोई नहीं पूरा मंच चलाता है । इस क्रम में वह जीवन की कहानी ऐसे करती है कि इसके अलावा कोई और काम उसे नहीं आता। भाषा का यह व्यापक संसार मूलतः जीवन संसार है जिसे समझकर बरतकर जीवन को सुंदर बनाने का काम आदमी हर क्षण करता रहता है।
कृपया,आलेख भेजने की प्रक्रिया से अवगत करवाने का श्रम करे।
सादर
डॉ. रमेश चंद मीणा
editortheopinion.one@gmail.com
whattsapp number 9461043176