
-विष्णुदेव मंडल-

चेन्नई। फिल्म का एक डायलॉग बहुत ही प्रचलित है माफी मांग लेने से कोई छोटा नहीं हो जाता और जो माफ कर देता है उनका दिल बहुत ही बड़ा होता है! सामान्य मानवीय जीवन में या फिर राजनीतिक जीवन में बोलचाल दरमियाँ कभी न कभी हर इंसान गलतियां करता हैैं, और समय पर अपनी गलतियों को सुधारते भी हैं और सीख भी लेते हैं।
आजकल राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने से राजनीतिक उबाल और चर्चा जोरों पर है। संसद के बाहर और भीतर समेत देश के सभी प्रमुख शहरों में कॉन्ग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल एकजुट होकर मौजूदा केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।
दूसरी ओर जिनकी सदस्यता गयी उन राहुल गांधी ने सोमवार को फिर दोहराया कि मैं सावरकर नहीं जो माफी मांग लूं। राहुल के इस बयान से उद्धव गुट नाराज हैं वही शिवसेना शिंदे गुट और भाजपा कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर यह सवाल उठा रहे हैं कि नेहरू गांधी परिवार देश और कानून से ऊपर समझते हैं इसलिए संसद को बंधक बना रहे हैं।
भाजपा नेता और प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के अनुसार राहुल गांधी की सदस्यता भारतीय जनता पार्टी ने नहीं छिनी है यह कोर्ट का फैसला है। उन्होंने आरोप लगाया कि देश में पहले भी कई सांसदों और विधायकों की सदन से सदस्यता गई है जिनमें भाजपा के नेता भी शामिल है, लेकिन कभी भी संसद को बंधक नहीं बनाया गया, लेकिन इस युवराज के लिए हाय तौबा मचायी जा रहा है। कोई उनके बारे में नहीं बोलते कि एक सांसद ओबीसी समाज को गाली दिया, अब कोर्ट भी गांधी परिवार के हिसाब से फैसला दे।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि पिछले दिनों जनार्दन द्विवेदी जो कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता है ने मीडियाकर्मियों से कहा था कि राहुल गांधी एक सम्माननीय परिवार से हैं उनके परिवार का भारतीय लोकतंत्र और देश सेवा में अहम रोल रहा है उनके दादी मां और पिताजी देश के लिए बलिदान दिए हैं इसलिए उनकी संसद सदस्यता जाना चिंताजनक है। ऐसा नहीं होना चाहिए। देश के कई हिस्सों से राहुल गांधी की सदस्यता जाने को लेकर कांग्रेसी नेता अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। तमिलनाडु के विरुद्धनगर सांसद माणिकम टैगोर ने अपने संसदीय क्षेत्र से त्यागपत्र देने की संकेत दिए हैं। डीएमके भी कांग्रेस पार्टी के साथ खड़ी है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन राहुल गांधी के संसद सदस्यता रद्द होने के पीछे केंद्र सरकार का हाथ बताते हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर राजनेता संसदीय परंपरा को मुकम्मल रखने के लिए अपनी वाणी को संयमित क्यों नहीं रखना चाहत।े आखिर संसदीय लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों को कुछ भी बोलने की आजादी दिया जाए। क्या नेता किसी खास जाति वर्ग को अपमानित करें तो उन पर कार्रवाई ना हो ? क्या न्यायालय भी केंद्र सरकार के इशारे पर चल रही है? क्या लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी केंद्र की सत्ता पर काबिज थी उस समय इस तरह की घटनाएं नहीं हुआ करती थी। यह एक यक्ष प्रश्न है ? जो हर राजनीतिक दल को सोचना होगा। गलत का जवाब गलत से नहीं गलत को सही करने से ठीक होगा। संसद को बाधित कर देने से देश का करोड़ों का नुकसान हो रहा है।
खासकर राहुल गांधी को विपक्षी एकता को बरकरार रखने के लिए अपनी वाणी में संयम लाना होगा बार-बार वीर सावरकर पर सवाल उठाकर वह अपने एक सहयोगी शिवसेना उद्धव ठाकरे को नाराज कर वह महाराष्ट्र में भाजपा से नहीं लड़ सकते। यह भी याद रहे कि नेताओं के एकजुट होने से जनता नहीं बदलती। मसलन दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। उसने किसी दल से गठबंधन नहीं किया था। लेकिन जनसमर्थन से उन्होंने भाजपा जैसे बड़ी पार्टी को शिकस्त दी इसलिए विपक्षी एकता से अधिक जरूरत इस बात की है कि विपक्षी नेता भारत के 130 करोड़ आबादी का जनसमर्थन प्राप्त करें। राजनीति सिर्फ जातीय गणित से नहीं, विपक्षी एकता से नहीं आमजन के मुद्दे उठाने से की जाती हैं। नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता है । उनके खिलाफ जन समर्थन के बिना कोई भी फार्मूला आगामी लोकसभा में काम नहीं आ सकता इसीलिए राजनेताओं को गठबंधन के साथ साथ सामाजिक आर्थिक एवं अन्य मुद्दे को भी जनता के बीच ले जाने की जरूरत है और कांग्रेस पार्टी को संसद से लेकर सड़कों पर हंगामा से अधिक न्यायालय में भी गुहार लगाने चाहिए।
(लेखक चेन्नई निवासी स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)
देश के सम्मानित व्यक्ति के लिए ,कानून की अलग किताब नहीं है, यह बात कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी को समझनी चाहिए.देश संविधान से चलेगा, इसकी समीक्षा के लिए न्यायालय है,देश के माहौल को बिगाड़ने की किसी भी कोशिश को जनता जवाब देगी