
-मनु वाशिष्ठ-

पैरेंटिंग
एक दिन मैं! अल्लसुबह
घर की बालकनी में
चाय की चुस्कियां ले रही थी।
चिड़ा चिड़िया को
अपने सपनों का तिनका तिनका
घर बनाते देख रही थी।
कुछ दिनों बाद चीं चीं की
आवाजें आने लगीं।
मीठी मधुर ध्वनि से
घर की बगिया महकाने लगीं।
ना कोई अधिकार
ना कहीं कोई जोर था
खुशियों का ही केवल शोर था।
नन्हे पक्षी बड़े हो रहे
अपने पैरों पर खड़े हो रहे
घर छोड़ वो कहीं चले गए।
खुले आसमान में घने बादल बीच
गिरते पड़ते नई चुनौती
उड़ना, खाना सीख रहे हैं।
बूढ़ी चिड़िया को न कोई मलाल था
यह तो जीवन एक सवाल था
जिसको उसने हल किया है।
नया अध्याय शुरू करने
नई दुनिया में प्रवेश लिया है।
फिर ढर्रे पर लौट रही है
तिनका तिनका जोड़ रही है।
जिंदगी की पाठशाला में
मुझको नए सबक सिखा रही है।
कितनी सुंदर जीवन शैली
बिन बोले ही बता रही है।
तुमने अपना फर्ज निभाया
नहीं कोई अधिकार जता रही है।
नहीं रखें कोई अपेक्षा
बस यही था कर्तव्य हमारा
बन कर गुरु बता रही है।
सब ग्रंथो का है ये सार
बिन किताब ही पढ़ा रही है।
__मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान


















जीवन की पाठशाला का बेहतरीन अध्याय , उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई
बहुत बहुत धन्यवाद
पक्षियों के माध्यम से आपने जीवन का सार बता दिया।
नीलम जी हार्दिक धन्यवाद ????