नशा है सभी दुर्गुणों की खान !

कभी मेहनत, आध्यात्म, ध्यान का नशा करके देखिए। किसी भी क्षेत्र में जब आप ईमानदारी से मेहनत से किसी कार्य को अंजाम देते हैं, उस नशे में अलग ही आनंद है। पैसे, प्रलोभन, चकाचौंध को अपने ऊपर हावी ना होने दें

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

शराबबंदी… फिर भी बिहार में जहरीली शराब से मौत। कर्नाटक, गुजरात में, एम पी में भी ऐसे हादसे हो चुके हैं। इन राज्यों में ही नहीं, सभी जगह नशे का अवैध व्यापार फल फूल रहा है। हाल ही, बिहार में छपरा में जहरीली शराब से अब तक साठ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अनुमान है कि आंकड़ा सौ से अधिक लोगों की मौत हो सकता है। तुम्हारे राज्य/ हमारे राज्य, वार/ पलटवार का खेल जारी रहेगा और कुछ समय बाद भुला दिया जाएगा।
नशा अपराध, अनैतिकता का सबसे बड़ा कारण है, इस पर रोक क्यों नहीं ? सरकारी तंत्र की ऊर्जा भी बचे, देश का भविष्य भी। और इसको रोकने में #राजनेता सहायक हो सकते हैं, क्योंकि वे जनता के लिए आदर्श होते हैं। लेकिन सभी सरकारें #राजस्व बढ़ाने के लिए शराब की दुकानें खोलने के लिए प्रोत्साहित करती है और ज्यादा दुकानें खोलने पर खुश होती है।
कहने को कुछ शब्दों में कह दिया जाता है कि बोतल में शराब है, किंतु इस एक शब्द शराब में बहुत भयंकर अर्थ छुपा है। जैसे एक छोटे से बम में थोड़ी सी बारूद अथवा विस्फोटक होती है, किंतु उसका विस्फोटक रूप अत्यंत भयंकर होता है, उसी प्रकार शराब रूपी विस्फोटक का रूप भी भयंकर होता है।

कोरोना के समय भी देखने में आया कि भोजन का इंतजाम सरकार, संस्थाएं कर रही थीं, और नशे की स्वयं। ये कैसी विडंबना है? शराब के ठेके खुलने इतने जरूरी हो गए, जिंदगी की सब चीजें और मुद्दे पीछे रह गए। लगता है सरकारों का प्रयास भी ज्यादा दुकानें खोल पहले तो आदी बनाएं, फिर एक दिन “विश्व नशा मुक्ति दिवस” मना युवाओं को जागरूक करें। जितनी दैनिक जरूरतों के सामान की दुकानें, मेडिकल शॉप नहीं दिखती, जितनी शराब की दुकानें। कई बार आश्चर्य होता है, जिसका कभी घरों में कभी नाम तक लेना पाप समझा जाता था, अब खुलेआम लड़किया भी खरीद रही हैं। आए दिन पुरुषों को शराब पीने के बाद सड़क पर, नालियों में गिरे देखती हूं तो बहुत दुख होता है। ऐसा ही कृत्य अगर महिलाएं करें तो, कैसा लगेगा। क्या घर संभालने की जिम्मेदारी केवल महिला की है। वैसे आजकल महिलाएं भी इस दिशा (नशे) में निरंतर प्रगति पथ पर दौड़ रही हैं, वो भी पीछे नहीं हैं। अब तो अक्सर लड़कियां, आंटिया भी खुलेआम सड़क, पब, पार्टियों में नशे में लड़खड़ाती देखी जा सकती हैं।
लोग पीने का बहाना ढूंढ लेते हैं। सुरक्षा तंत्र, प्रहरी, न्याय तंत्र, चिकित्सा जगत, आइटी सेक्टर, पत्रकारिता, जाति, चालक, नौकरी पेशा, व्यवसाई, मार्केटिंग, मॉडलिंग, फैशन, बॉलीवुड, नेता, अभिनेता, अमीर, गरीब, गुंडे, शरीफ, खुशी, गम, ऊंचे स्तर का दिखावा, प्रेम में छलावा, लाचारी, बेरोजगारी, तनाव, भटकाव, जुआरी, भिखारी, आदिवासी, या भोग विलासी #नाजाने ऐसे कितने #बहाने हैं, जो पीने वाले अक्सर खोजते रहते हैं। बेरोजगारी भी एक बहाना ही है, लेकिन उस बेरोजगारी में भी पीने के लिए, पैसे पता नहीं कहां से पैसे आ जाते हैं। स्वयं को पाक साफ दिखने के लिए इन बहानों (excuses) से बचना छोड़िए। कुछ को ख़ुशी है.. तो पीनी है, दुखी है.. तो गम भुलाने के लिए पीनी है। हमारे समाज में चलता है.. तो पीनी है। हमारी कास्ट में चलता है.. तो पीनी है, प्रेमी या प्रेमिका रूठ गए .. तो पीनी है, कैरियर में सफलता नहीं मिली .. तो पीनी है। कभी गरीबी का बहाना.. कभी अमीरी का बहाना, क्या करू सीनियर्स ने पिला दी , क्या करू बॉस को खुश करना था, आखिर कब तक यह excuses आपको कमज़ोर बनाते रहेंगे क्यूंकि सच तो यही है … पीनी तो आपको ही थी।
शराब के सेवन से अनैतिक कार्यों में लिप्त होने या जोखिम लेने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह #विवेक तो पहले ही खो चुका होता है। इस प्रकार यौन संक्रमित बीमारियों के होने का भी खतरा बढ़ जाता है। कब व्यक्ति एक पैग से शुरू होकर शराब की लत के #दुष्चक्र में #फंस जाता है। उसे पता भी नहीं चलता। और फिर शुरू होता है .. बर्बादी का अंतहीन सिलसिला.. होश आने पर उसे महसूस भी होता है। फिर अपनी गलतियों को छुपाने या परिस्थितियों का सामना न कर पाने से दुबारा… फिर एक बार और … फिर एक बार और… इसलिए एक पैग की भी शुरुआत ही क्यों करें?
WHO की रिपोर्ट के अनुसार शराब के सेवन से अवसाद, आत्महत्या, बेचैनी, लीवर सिरोयसिस, हिंसा, दुर्घटना तथा आपराधिक मामलों में प्रवृत होने के मामले ज्यादा बढ़ जाते हैं। हमेशा अपने मातापिता, पत्नी, बच्चों, परिवार को ध्यान में रखते हुए सोचें। छोड़ने के लिए सब तरह की कोशिश करें। ध्यान, व्यायाम अवश्य करें, फिजिकल फिट रहें। अच्छी किताबें पढ़ें अच्छी संगत में रहें। और जो भी उपाय सम्भव हो, अवश्य करें। परिवार में बच्चों के सामने स्वस्थ माहौल बनाएं, जिससे युवा होते बच्चे आपसे सारी बातें शेयर कर सकें। बाहर की हर मुसीबत का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सकें, परवरिश पर विशेष ध्यान दें, ऐसे लोगों में #आत्मविश्वास की बेहद कमी होती है। दिल के बुरे ना होते हुए भी सही कार्य के निर्णय नहीं ले पाते। पारिवारिक कलह के लिए जिम्मेदार होते हैं। और स्वयं को मानसिक, शारीरिक यहाँ तक कि आर्थिक भी दिवालिया होने से बचाएं।
नशे में डूब व्यक्ति डर व चिंता के प्रति लापरवाह हो जाता है। किसी भी चुनौती का सामना करने से डरते हैं, लेकिन #अपराध करने में भी नहीं चूकते। गलत काम करते हुए, सही #लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सकते। परिवारों के विघटन में नशा भी जिम्मेदार घटक है। निश्चय ही नशे पर नियंत्रण की नीति बननी चाहिए। College, offices आदि में भी काउंसलिंग शुरू की जाए, तो भी किसी हद तक इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। ऐसे में परिवार का सहयोग आवश्यक है।
“कभी मेहनत, आध्यात्म, ध्यान का नशा करके देखिए। किसी भी क्षेत्र में जब आप ईमानदारी से मेहनत से किसी कार्य को अंजाम देते हैं, उस नशे में अलग ही आनंद है। पैसे, प्रलोभन, चकाचौंध को अपने ऊपर हावी ना होने दें। अगर आप वास्तव में सिद्ध, योगी, गांधी, विवेकानंद  जैसे व्यक्तित्व को अपने स्वयं के घर में भी चाहते हैं, सभ्य समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो कृपया नशे से बचें। इसे केवल चर्चा का विषय नहीं बनायें |”
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

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Neelam
Neelam
2 years ago

जिस भी परिवार में यदि कोई नशे का आदी है तो उस परिवार के बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।वे शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, व सामाजिक रूप से कमतर होते जाते हैं।