-ए एच जैदी-

(नेचर प्रमोटर)
कोटा। इस बार दिसंबर की 15 तारीख बीत जाने के बावजूद कोटा के जलाशयों पर पक्षियों की कम संख्या नेचर और बर्ड प्रेमियों और शोधार्थियों को चिंता में डाले हुए है। कोटा के जलाशयों पर 15 दिसंबर का समय पक्षियों के लिहाज से पीक का माना जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इनमें भी विदेशी पक्षियों का तो टोटा पडा हुआ है। यही समय पक्षी गणना का भी रहता है। इसका कारण यही है कि इस अवधि में ही सर्वाधिक पक्षी मौजूद होते हैं। हालत यह है कि जिस उम्मेदगंज तालाब पर इन दिनों चार से पांच हजार तक पक्षी कलरव करते नजर आते थे वहां इस बार यह संख्या 500 तक ही सीमित है। यानी केवल दस फीसदी पक्षी ही डेरा डाले हुए हैं। यहां तफ्टेड पोचर्ड, वाइट आई पोचर्ड, कॉमन कूट, गार्गेनि टील, रूडी शेल्डक कोमड़क दिखाई दे रहे हैं।

पक्षी प्रेमी जुनेद शेख ने बताया कि ट्री बर्ड में किंग फिशर, हनिबज़ार्ड, ब्लेक काइट, आउल वुडपैकर, ब्लेक डरोंगो, ओपन बिल स्टोर्क, पेंटेड स्टोर्क, स्पॉट बिल, लेसर विस्लिंग, टील लिटिल कोरमोरेंट, पर्पल मुरहेंन, कॉमन मुरहेंन, वाटर हेंन वाइट, आईबीज़, स्पूनबिल पक्षियों को देखा जा सकता है। यहां पीक समय में 2500 तक प्रजाती के पक्षी देखने को मिल जाते हैं।

इन दिनों प्रमुख जलाशयों बर्धा बांध, आलनिया बांध तथा रानपुर के जलाशयों में पानी की बहुतायत है। इससे पक्षियों को भोजन नहीं मिल पा रहा। भोजन के अभाव में पक्षी इन जलाशयों पर डेरा नहीं डाल रहे। पक्षी छिछले पानी वाले जलाशयों में रहना पसंद करते हैं। जलाशयों में पानी कम होने पर कई कीट व छोटी मछलियां पानी में दिखाई देने लगते हैं और पक्षियों को अपना भोजन मिल जाता है। कोटा के जलाशय सिंचाई के काम आते हैं। जब किसान खेतों में सिंचाई में इन जलाशयों कें पानी का उपयोग करेंगे तब पानी कम होगा।