
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
अपना ऐसा मकान है प्यारे।
जिसकी छत आसमान है प्यारे।।
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मरना जीना समान है प्यारे।
ये तो हिंदोस्तान है प्यारे।।
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एक दहशत* दिलों पे छाई है।
वर्ना अम्नो-अमान* है प्यारे।।
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गीत ग़ज़लें कलाम* बिकता है।
फ़िक्रो-फ़न* भी दुकान है प्यारे।।
मुख़्तलिफ़हैं सुख़न की तरकीबें।
“अपनी अपनी ज़ुबान है प्यारे”।।
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आ ही जाऊॅंगा उसकी बातों में।
ऐसा उसका गुमान है प्यारे।।
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मैं तेरी जान का मुहाफ़िज़* हूॅं।
तू मेरा पासबान* है प्यारे।।
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जिसका लहजा*करख़्त हो “अनवर’।
वो भी कोई ज़ुबान है प्यारे।।
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दहशत*ख़ौफ डर
अम्नो-अमान*शांति चैन
कलाम*काव्य
फ़िक्रो-फ़न* काव्य चिंतन
मुख़्तलिफ़*विभिन्न प्रकार की
सुख़न*काव्य शायरी
मुहाफ़िज़* हिफ़ाज़त करने वाला
पासबान*रक्षक
लहजा*शैली
करख़्त*कठोर
ज़ुबान*भाषा
शकूर अनवर
9460851271
बहुत खूब