
-सुनीता करोथवाल-

बूढ़ी तुम ही नहीं हो रही माँ
आहिस्ता आहिस्ता लोकगीत भी बूढ़े हो रहे हैं
अनचाहे बुजुर्ग से गाँव में छूट गए लोकगीत
डी जे चीखता है महिला संगीत पर
छोटी ढोलकी पर कौन ठुमकता है देशी अंदाज में अब भला
शर्मिन्दा सी दुबक गयी है वो जाने किस कोने में..
बच्चे दुखी नहीं होते अब
ढीले पजामे को बार बार उपर खींचकर
ढोलक के पागलपन में…
फिल्मी गीत बजते हैं घर घर
लोकगीत कब्र में गिरने को हैं…
बुजुर्ग की मौत पर गाए जाने वाले
जीवन दर्शन के गीत
चाक भात के गीत
सुरीली बन्नो
विवाह में फेरों के गीत
फाल्गुन के मनभावन गीत
कुल देवता के गीत
पानी भरने जाती औरतों के श्रृंगार के गीत
देवर भाभी के गीत…
होली पर गाए जाने वाले फाल्गुन गीत
चाँदनी रातों में नाचती दादी मर चुकी
और वो गीत भी बुढ़ापे से लड़खड़ा रहे हैं
अल्हड़ बेटियाँ नाचती नहीं रात को
होली के गीतों पर
चले जाते हैं त्योहार पटाखों में चीखकर
लोकगीत और धरती दोनों रो रहे हैं…
कार्तिक स्नान करती नानी
भजन गाती सुबह चार बजे कुएँ पर सखियों संग
फिर माँ सीख गयी
सुनो माँ अब तुम मुझे दे दो ये लोकगीत …
आओ बाँट लें एक एक गीत
वरना त्योहार और विवाह गूंगे हो जाएँगे ।।
सुनीता करोथवाल
गुजरे जमाने में रेडियो खोलते ही मंगल ध्वनि सुनाई पड़ती थी,अब टी वी में संगीत एवं अर्ध वस्त्रों में ठुमकते नारी शरीर दिखाई देते हैं,सुनीता जी ने अर्वाचीन और आधुनिक भारतीय लोक गीत और लोक संस्कृति से जुड़े मुद्दों को समाहित किया है अपनी कविता में