जब कुछ नहीं था तो अंधेरे से लड़ते हुए मशाल जलाई

क्षितिज भर छाये आसमान से अपनी आंखों में भर लेते कभी अभाव का रोना नहीं रोया भाव ऐसा की कुछ भी कम नहीं लगता बस दिया ही दिया जगत को और घर को

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जीवन का पाठ

– विवेक कुमार मिश्र-

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

यात्रा पर नहीं जाते बुजुर्ग
पर हर यात्रा का निचोड़
उनकी बातों में होता
जो जीवन घुमा था, जो कुछ जीता था
जो अनुभव संसार था
वह यात्रा चक्र में
उनके साथ चलता हुआ आ जाता

बुजुर्गो की दुनिया में
मान सम्मान और अनुभव की
नई पुरानी विधियां होती हैं
कैसे उन्होंने रचा अकेले ही
इतना बड़ा संसार
जब कुछ नहीं था तो अंधेरे से लड़ते हुए
मशाल जलाई

मुख्य द्वार पर
अलाव व मशाल की
ज्ञानजोत जलाई
जब यहां से कोई आता जाता नहीं था
तब भी यही से संसार भर की गतिविधियों का
क्रिया व्यापार चलता रहा

क्षितिज भर छाये आसमान से
अपनी आंखों में भर लेते
कभी अभाव का रोना नहीं रोया
भाव ऐसा की कुछ भी कम नहीं लगता
बस दिया ही दिया जगत को और घर को

इस तरह बसता गया एक भरा पूरा संसार
और यहीं से चल पड़ा ज्ञान का संसार
आज चाहे जितनी तकनीकी सुविधा बढ़ गई हो
पर बुजुर्गों के अनुभव के आगे कुछ भी नहीं

बुजुर्ग अपनी बातों से अनुभव से इतना बता देते हैं कि
कहीं गये बिना भी आपको संसार की सैर करा जाते हैं
बुजुर्गो की पीढ़ी जीवन वृत्त का पाठ सुनाती रहती है
उनके एक एक वृतांत में संसार की कहानियां
अनछुए पहलुओं के साथ सामने आ जाती हैं।

– विवेक कुमार मिश्र

(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)

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Neelam
Neelam
2 years ago

100% सच

Vivek Mishra
Vivek Mishra
Reply to  Neelam
2 years ago

बहुत बहुत आभार आपका