
-मनु वाशिष्ठ-

मां _
परेशां हों तो
सर्दी की धूप सी गुनगुनी, प्यार देती मां
उनकी बातें, देती दिलासा
करतीं ऊर्जा संचार, लाइफ लाइन है मां!
पत्नि __
है श्रेष्ठतम,सलाहकार
बने जब जीवनसंगिनी अर्धांगिनी!
जीवन यात्रारथ पर,बन पहियों की धुरी
रण क्षेत्र में रक्षा दायिनी!
बहन __
मां का आंगन!
बहन भाई संग,बीता बचपन
बांध कलाई पर रक्षा धागा
लेती सारी बलाएं, दुख कर देती आधा
बेटी __
उछाल के चावल!
गई जो बेटी,
पल भर में हुई पराई
दो दो कुल का मान बढ़ाई
प्रेमिका __
जंगल में विचरती
शोख सी चंचला हिरनी! कभी अश्व वाहिनी
बहती पवन सी,
देती प्राणवायु जीवन दायिनी!
नारी __
नारी है
नारायणी!
कल कल बहती, सब सहती
पोषण करती नीर क्षीर दायिनी!
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान
वाह क्या बात है।नारी के हर रूप का बिलकुल सटीक चित्रण आपने किया है ।
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क्या शानदार बात कही मन को हर शब्द ने छुआ????????????????
क्या शानदार बात कही मन को हर शब्द ने छुआ????????????????
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बहुत ही मनभावन