
-डॉ अनिता वर्मा-

(सहआचार्य हिन्दी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
बचपन मानव जीवन की अमूल्य धरोहर और स्वर्णिम काल होता है जहाँ बचपन सभी प्रकार के द्वंद्व चिंताओं से मुक्त होकर स्वछन्द रूप से विचरता है। इस दृष्टि से लेखक श्री जयसिंह आशावत का बालगीत संग्रह आकू -काकू अत्यंत महत्वपूर्ण है। बचपन जहां बालमन उमंगित होता है गुनगुनाता है जहाँ बाल मन के सपने अंगड़ाई लेते हैं कल्पना उड़ान भरती है यही है बचपन जो इस बालगीत संग्रह में गीतों के माध्यम से साकार हो उठा है। बच्चों की अपनी दुनियाँ और अपना संसार होता है जिसमें उत्सुकता अर्थात् औत्सुक्य का भाव प्रमुख होता है। जहाँ बाल मन में अनेक प्रश्न पहेलियां और सवाल बालक की आँखों में सदैव तैरते रहते हैं। बच्चों की इस अद्भुत दुनियाँ और बाल संसार का संवेदना के स्तर पर लेखक ने पाठकों को साक्षात्कार कराया है। बाल मन की सुन्दर अनुभूतियाँ का परिचय लेखक ने इस संग्रह के विभिन्न बाल गीतों में करवाया है जो सराहनीय है। छोटे छोटे सहज सरल बाल गीतों में बच्चों की दुनियाँ समायी हुई है जिसे शब्द बद्ध किया गया है। बाल गीत की सबसे बड़ी विशेषता सरलता सहजता और लयात्मकता होती है जिसमें कोई सन्देश और शिक्षा अन्तर्निहित होती है जो इन गीतों में दिखाई देती है। ये बाल गीत अत्यंत सरस और माधुर्य भाव से पूरित हैं। यह सहजता और सरसता बालकों को मन के स्तर पर स्पर्श करती है उन्हें जोड़ती है देखिये- आज पकेंगे फिर पकवान/घर पर आये हैं मेहमान/पूड़ी कचौड़ी और समोसा/खट्टी चटनी इडली डोसा/मीठे में रसगुल्ला भैया/नाचूँगा खा ता ता थैया ।।।
कितना सहज सरल और मीठा बालगीत है। पकवानों का बिम्ब और उनकी खुशबू गीत से प्रसन्नता और स्वाद को जीवंत कर देती है। गीत में लयात्मकता है जो सीधे मन को स्पर्श करती है। पुस्तक में विविध भावों के गीत संकलित हैं जिनमें प्रकृति रिश्ते समाज परिवार सभी कुछ समाहित हैं। ये गीत मनोरंजन के साथ बालकों के लिए शिक्षा और संस्कार का बीजारोपण भी करते हैं। ये गीत जीवन का पाठ गाते हुए सीख भी देते हैं। यही इन बालगीतों का वैशिष्ट्य है। कुछ बाल कहानियाँ जो पंचतंत्र की कहानियों की सीख देते हैं। नैतिक शिक्षा भी सिखाते चलते हैं। जैसे खट्टे होते अंगूर बन्दर और रोटी जैसी कथाएं नैतिक शिक्षा के साथ बालकों में समझ भी विकसित करती हैं। पशु पक्षी सदैव से बालकों के प्रिय पात्र रहे हैं जो सदैव से शिक्षा का माध्यम बने हुए हैं। बालक गीतों को गाकर बहुत कुछ शीघ्रता से सीखता है आत्मसात करता है। प्रस्तुत बालगीतों में सौर मंडल की महत्व और उससे जुडी विशेष जानकारी सौर मंडल गीत में व्यक्त हुई है। ये गीत अपनी सहजता सरलता से बच्चों को अवश्य कंठस्थ हो सकेंगे। महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए गीतों में पुस्तक मेला, गमले, प्यासा कौआ, चालाक लोमड़ी , चतुर खरगोश, शेर आदि प्रमुख बालगीत हैं। चिड़ा -चिड़ी बाल गीत में शिक्षा के साथ बौद्धिक कौशल और निति की शिक्षा समाहित है जो कहानी के माध्यम से बच्चों को सीख भी देती है देखिये
– कहा चिड़ै ने माफी दे दो प्यारी चिड़ियाँ रानी/ झूठ नहीं जीवन में बोलूं तू जानम मै जानी /रही ताकती बिल्ली मौसी बहुत बहुत घुर्राई /जान चिड़ै की बचा अकल से /चिड़िया रानी लाई ।।
बाल गीतों के माध्यम से बालकों को सीख देते गीतों की इस श्रृंखला में कछुआ और खरगोश गीत देखिये—
तेज दौड़ थम जो सुस्ताते /मात वही तो खाते
लगातार चलने वाले तो/ विजय सदा ही पाते ।।
बालगीत चित्रकार गेंडा और कोरोना में लेखक आशावत ने समसामयिक संदर्भों में महामारी कोरोना और एकांतवास की पीड़ा और समाधान के रूप में उसका सद्पयोग बताते हुए मन की दृढ़ता और आत्म विश्वास को भी बालगीत में अभिव्यक्ति दी है जो बालकों के लिए निश्चित रूप से प्रेरणास्पद और दिशा प्रदान करने वाला है। इसी क्रम में पर्यावरण बचाना है, आइंस्टीन जर्मन वैज्ञानिक, सौर मंडल जैसे बालगीतों में सहज सरल शब्दावली के माध्यम से बच्चों को महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गई है। बाल मन की अठखेलियाँ, सुन्दर कल्पनाएँ, उमंग, ऊर्जा ,उत्साह ,मनोरंजन ,शिक्षा, ज्ञान सभी कुछ इन गीतों में मिलता है। गागर में सागर कहावत यहाँ चरितार्थ होती है कम शब्दों में गहरी बात । बिल्ली बन्दर रोटी, चालाक लोमड़ी ,प्यासा कौवा, चतुर खरगोश शीर्षक के गीतों में लेखक ने बिम्बों और शब्द चित्रों के माध्यम से पारंपरिक श्रुत कहानियों को बड़ी ही सरलता और लयात्मकता के साथ बालगीत के रूप में ढाला है शब्दबद्ध किया है। प्रस्तुत संग्रह के सभी बालगीत बालकों के लिए प्रेरक और दिशा बोधक सिद्ध होंगे जो इस बालगीत संग्रह आकू -काकू का प्रमुख उद्देश्य भी है। निश्चित रूप से ये समस्त गीत जीवन के विविध विषयों को समेटे हुए है। इन बाल गीतों की भाषा प्रभावी सहज सरल बाल मनोविज्ञान के अनुकूल व लयात्मकता से भरपूर है। बालगीत बाल मन की सहज सरल अभिव्यक्ति होती है जो प्रस्तुत बालगीत संग्रह में मुखर हो उठी हैं। पुस्तक में बालमन की अद्भुत दुनियाँ ,बाल मनोविज्ञान चिंतन व बालकों की कल्पना की दुनियाँ को बाल चक्षुओं से महसूसते हुए सुन्दर गीतों का सृजन किया है। इस हेतु लेखक जयसिंह आशावत जी को बहुत बधाई और शुभकामनाएं। यह बालगीत संग्रह बालकों व सुधि पाठकों के बीच महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगा ऐसी मेरी कामना है। पुनः बधाई।
-पुस्तक आकू- काकू /लेखक जयसिंह आशावत/ बालगीत संग्रह/प्रकाशकरू बोधि प्रकाशन जयपुर/मूल्य रू150 रूपये
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डॉ अनिता वर्मा कोटा, राजस्थान
9351350787
आजकल प्रथम तो बाल साहित्य सिमट गया है, दूसरे मातापिता भी पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं, उन्हें भी मोबाइल आसान लगता है। इसका प्रभाव बच्चों के व्यवहार में दिखता है। अब बालपन की मासूमियत, शब्द ज्ञान मानो गायब हो रहा है। बच्चे उम्र से पहले बड़े हो रहे हैं। ऐसे में बाल मन की अभिव्यक्ति का सुंदर सृजन है ये काव्य संग्रह। बहुत बहुत बधाई।
बहुत सुंदर व रोचक पोस्ट।बचपन में याद किए बालगीत अभी भी अंतर्मन में हैं जो समय समय पर जाग्रत हो जाते हैं। एकबार छिड़ गई लड़ाई हवा और सूरज में, हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से ये बोला, नन्ही नन्ही जल की बूंदें जब लेकर आता बादल आदि आदि मनमोहक बाल गीत।