chakrapani

डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)

तंजावुर जिले के कुंभकोणम स्थित चक्रपाणि भगवान का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। कुंभकोणम शहर के बीचों-बीच स्थित यह मंदिर रेलवे स्टेशन से दो किमी दूर है। मंदिर की विशेषता यह है कि भगवान विष्णु यहां चक्र रूप में दर्शन देते हैं और सूर्य के गर्व को समाप्त करते हैं। भगवान शिव की तरह विष्णु के भाल पर तीसरा नेत्र है। कुंभकोणम के प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिरों में यह शामिल है।

मंदिर संरचना व इतिहास

भगवान विष्णु के दिव्यदेशों में शामिल चक्रपाणि मंदिर सारंगपाणि मंदिर के निकट है। भगवान विष्णु के चक्र को सुदर्शन चक्र कहा जाता है। मंदिर की भव्यता और अष्टभुजाधारी भगवान की स्तुति आलवार संतों ने की है। मंदिर का आकर्षण इसके दर्शनीय स्तम्भ हैं। भगवान चक्रपाणि की पूजा करते हुए राजा सरफोजी द्वितीय की कांस्य प्रतिमा यहां है। राजा असाध्य रोग से ग्रस्त था जो भगवान की कृपा से ठीक हो गया था। मंदिर के बाहरी गलियारे में पंचमुखी बजरंगबली की मूर्ति है। मौजूदा मंदिर का निर्माण १६२० में गोविन्द दीक्षिथर ने कराया जो मदुरै के नायक राजवंश के दीवान थे। उन्होंने ही रामस्वामी मंदिर का भी निर्माण कराया। नए व पुराने चक्रपाणि मंदिर के बीच उन्होंने गलियारा बनाया जहां आज कई दुकानें हैं। मंदिर के पूर्वी और पश्चिमी द्वार को ताच्चियान वय्यील और उत्तरवाना वय्यील कहा जाता है। मंदिर के बाह्य गलियारे का निर्माण अहाते के रूप में हुआ है। आगमपर विनायकर, पंचमुखी हनुमान और विजयवल्ली तायार की अलग-अलग सन्निधियां हैं। कावेरी के तट पर मंदिर के समक्ष चक्र पडिदुरै घाट अति प्रसिद्ध है। इस घाट पर अंतिम संस्कार होते हैं। यह मान्यता है कि भगवान ने चक्र का रूप जन्म और मृत्यु की गति के चक्र को समझाने के लिए लिया। मंदिर का विशेष आकर्षण बिल्व पत्र से भगवान की अर्चना है जो अमूमन शिव मंदिरों में ही होती है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु का सबसे शक्तिशाली हथियार सुदर्शन चक्र है। एक बार भगवान ने पाताल लोक में बसे जलंदसुर के वध के लिए सुदर्शन चक्र छोड़ा। यह चक्र कावेरी से होता हुआ पाताल लोक गया। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा उस वक्त कावेरी नदी में स्नान कर रहे थे। उन्होंने सुदर्शन चक्र को देखा और अभिभूत हो गए। उन्होंने यहीं सुदर्शन चक्र की छवि को स्थापित कर दिया। भगवान सूर्य जिनको अपनी चमक और रोशनी पर गर्व था को सुदर्शन चक्र के आलोक ने तोड़ दिया। सूर्य ने यहां सुदर्शन चक्र की पूजा की और भगवान ने सूरज को समस्त शक्तियां व चमक लौटा दी। भगवान सूर्य ने ही यहां चक्रपाणि मंदिर का निर्माण कराया और वरदान मांगा की कुंभकोणम का नामकरण उनके नाम पर हो। भगवान विष्णु ने वरदान देते हुए कुंभकोणम को भास्कर क्षेत्र का नाम दिया। सूर्य को सभी नौ ग्रहों का अधिपति कहा जाता है। सूर्य यहां भगवान विष्णु के आगे नतमस्तक हैं इसलिए यहां की गई पूजा सभी नौ ग्रहों की पूजा के समकक्ष मानी जाती है। सूर्य के अलावा ब्रह्मा, अग्नि, मार्कण्डेय मुनि व अहीरबुधन्य महर्षि ने विष्णु की यहां तपस्या व आराधना की।

(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)

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