
डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
कुंभकोणम शहर के मध्य में स्थित भगवान शिव का आदि कुंभेश्वरन मंदिर अतिप्रसिद्ध है। शिवलिंग की पूजा आदि कुंभेश्वर नाम से होती है। कुंभकोणम का नाम भी इस मंदिर की वजह से पड़ा है। शिव के साथ प्रतिष्ठित पार्वती की पूजा मंगलाम्बीकै अम्मन के रूप में होती है। सातवीं सदी के इस मंदिर का वर्णन थेवारम में मिलता है जिसे शैव संतों नयनमारों ने लिखा है। यह मंदिर पाडल पेट्र स्थलम में शुमार है।
मंदिर का आकार
मंदिर परिसर 30181 वर्ग फुट में फैला है। मंदिर के चार प्रवेश द्वार हंै। पूर्वी प्रवेश द्वार जिसमें ग्यारह माले हैं और यह 128 फुट ऊंचा है। आदि कुंभेश्वरर और मंगलाम्बीकै के अलावा मंदिर परिसर में कई सन्निधियां हैं। सन्निधियों के अलावा कई मण्डप हैं। सबसे दर्शनीय मण्डप विजयनगर शासकों द्वारा निर्मित 16 खम्भों वाला सभागार है। इस हाल में सभी 27 नक्षत्रों और 12 राशियों के संकेत उकेरे गए हैं। भित्ति चित्र का यह अद्भुत कार्य एक ही शिला पर हुआ है। मंदिर में दैनिक छह अनुष्ठान होते हैं। सबसे प्रमुख तमिल मासी माह (फरवरी-मार्च) का मगम नक्षत्र उत्सव है। मंदिर की मौजूदा संरचना का निर्माण नौंवीं सदी के चोल शासकों की देन है। फिर विजयनगर नरेश और सोलहवीं सदी में तंजावुर के नायक राजाओं ने विस्तार कराया। मंदिर का प्रशासन तमिलनाडु सरकार के हिन्दू धर्म व देवस्थान विभाग के पास है।
पौराणिक कथा
कुंभेश्वरन मंदिर नाम से ही इस क्षेत्र को कुंभकोणम नाम मिला। कुंभ का आशय श्घट्य से है जो सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से प्रलय के वक्त खो गया। यह प्रलय शिव के बाण से आई थी। इस घट या कमण्डल के जरिए ही प्रजापिता ने पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति की। प्रलय के बाद भगवान शिव ने यहां आराम किया। कहा जाता है कि अमृत की बूंदें कुंभकोणम में दो जगह गिरीं एक महामगम सरोवर और दूसरा पोट्रामरै सरोवर। महामगम सरोवर में बारह साल में एक बार कुंभ जैसा स्नान होता है। कुंभकोणम को पहले कुडमुक्कू कहा जाता था। संगम कालीन साहित्य कुडवय्यील में भी कुंभकोणम शहर का उल्लेख है। मंदिर के केंद्र में आदि कुंभेश्वरन शिवलिंग है। मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं अमृत व रेत के मिश्रण से शिवलिंग बनाया। कुंभेश्वरन के पास ही पार्वती की सन्निधि है। भगवान की सवारी के लिए बने सभी वाहन रजत धातु से बने हैं। मंदिर में चारों शैव संत अप्पर, तिरुज्ञानसंबंदर, सुंदरर और माणिकवासगर जिनको नालवर कहा जाता है के अलावा 63 नायनार की मूर्तियां भी हैं।
प्रमुख सरोवर
यह मंदिर कावेरी के घाट पर है। कुंभकोणम के प्रमुख सरोवर महामगम, पोट्रामरै, चक्र, वरुण, कश्यप, मातंग और भागवद तीर्थ कुंभेश्वरन मंदिर से जुड़े हैं। मंदिर के भीतर मंगलकुप्पम, नाग तीर्थ और कुर तीर्थ नाम से तीन कुएं हैं। जबकि चंद्र तीर्थ, सूर्य तीर्थ, गौतम तीर्थ और वराह तीर्थ मंदिर के जलाशय है। बारह साल में एक बार आयोजित होने वाला महामगम पर्व इस मंदिर से ही जुड़ा है। इस उत्सव में देश-दुनिया से लाखों भक्त आकर महामगम में डूबकी लगाते हैं। महामगम उत्सव के पौरातात्विक साक्ष्य भी मौजूद हैं। सातवीं सदी के शैव कवि व संत अप्पर ने थेवारम में मंदिर और भगवान शिव का यशोगान किया है। इस वजह से यह मंदिर पाडल पेट्र स्थलम के रूप में वर्गीकृत है। यह मंदिर कावेरी के दक्षिणी तट में सातवां शिव मंदिर है।
(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)
तमिलनाडु आध्यात्मिक संस्कारों की भूमि है, जिसका प्रतीक यहां के अति प्राचीन मंदिर हैं। प्रत्येक मंदिर अपने आप में मूर्त इतिहास है। यह शिल्प के अद्भुत उदाहरण हैं। मंदिरों की विरासत का राज्य के पर्यटन में भी अमूल्य योगदान है। लेखकर डॉ. पीएस विजयराघवन ने अपनी इस संकलित पुस्तक में मंदिरों पर आमजन की आस्था और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला है। सं.