
डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
तमिलनाडु का कुंभकोणम शहर मंदिरों की नगरी के रूप में लोकप्रिय है। शहर के बीचों-बीच स्थित सारंगपाणि मंदिर भगवान विष्णु के प्रमुख मंदिरों में हैं। नालयार दिव्य प्रबंधम में वर्णित यह देवस्थान 108 दिव्यक्षेत्रों में है। कावेरी के तट पर स्थित यह मंदिर पंचरंगा क्षेत्रम भी कहलाता है। मंदिर का भव्य व विशाल गोपुरम अत्यंत दर्शनीय है। मंदिर का निर्माण काल भी बहुत पुराना है। इस मंदिर को श्रीरंगम व तिरुपति के बाद तीसरे क्रम पर रखा गया है।
इतिहास व संरचना
मंदिर की विलक्षणता व भव्यता का श्रेय मध्ययुगीन चोल, विजयनगर व मदुरै के नायक शासकों को जाता है। मंदिर का विशाल परिसर ग्रेनाइट की दीवार से बना है जिसमें सरोवर भी शामिल है। ग्यारह मंजिला राजगोपुरम 53 मीटर यानी 173 फुट ऊंचा है। मंदिर के पश्चिमी द्वार के पास पोट्रामरै सरोवर है। सारंगपाणि मंदिर कुंभकोणम का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है और राजगोपुरम की दृष्टि से भी विशाल है। मुख्य गोपुरम के अलावा पांच अन्य छोटे गोपुरम है। राजगोपुरम की खासियत यह है कि इसमें कई पौराणिक कथाओं का वर्णन है।
मंदिर की मुख्य सन्निधि जहां भगवान सारंगपाणि विराजमान है उसका आकार रथरूपी है। इस रथ में अश्व व गज जुते हैं। सन्निधि का प्रवेश द्वार दोनों तरफ से है। पश्चिमी हिस्से में मुनि हेमर्षि की मूर्ति है। भगवान यहां पल्लीकोंडा मुद्रा में शयन कर रहे हैं उनके शीर्ष के नीचे दायां हाथ है। साथ ही लक्ष्मी और मुनि हेमर्षि भी उनकी स्तुति करते हुए हैं।
दोनों ओर के द्वार उत्तरायण और दक्षिणायन का द्योतक है। हर छह महीने बाद इनमें से एक दरवाजा खुलता है। पोट्रामरै जलाशय के निकट हेमर्षि मण्डप है। शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम की 108 मूल मुद्राओं में से कुछ को मंदिर की दीवार पर भित्ति चित्र के रूप में उकेरा गया है। इसी तरह की छवियां चिदम्बरम के नटराज और तंजावुर के बृहदीश्वरर मंदिर में भी दिखाई पड़ती है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सारंगपाणि ने यहां हेमर्षि मुनि को दर्शन दिए थे। स्थल पुराण के अनुसार हेमर्षि मुनि ने पोट्रामरै जलाशय के पास भगवान विष्णु की तपस्या कर उनको प्रसन्न किया। वे लक्ष्मी को अपनी पुत्री के रूप में चाहते थे। भगवान ने उनको इसका वरदान दिया। पोट्रामरै जलाशय के हजारों कमल के पुष्प के बीच लक्ष्मी का अवतरण हुआ इसलिए उनका नाम कोमलवल्ली पड़ा जिसका आशय होता है कि कमल के बीच में खिली। भगवान आरावमुदन जिनके रथ को हाथी व अश्व खींच रहे थे वे निकट के सोमेश्वरन मंदिर में रुके ताकि लक्ष्मी से विवाह कर सकें। भगवान यहां अपने रथ के साथ इसी रूप में बस गए। सारंगपाणि का तमिल में आशय जो हाथों में कमान थामे हैं।
पंचरंगा क्षेत्र
भगवान रंगनाथ के पांच क्षेत्रों को पंचरंगा क्षेत्रम कहा जाता है। ये पांचों क्षेत्र कावेरी के तट पर हैं। इनके नाम श्रीरंगपट्टनम, श्रीरंगम, अप्पालरंगम, मयूरम और वट्टारंगम है। सारंगपाणि का वर्णन वट्टारंगम के संदर्भ में मिलता है। इस मंदिर की स्तुति आण्डाल, पेरियआलवार, भूदत आलवार, तिरुमईसई आलवार, नम आलवार व तिरुमंगै आलवार ने की है। मान्यता के अनुसार नाथमुनि ने भगवान आरावमुदन की स्तुति में गाए गए चार हजार काव्योक्ति का संकलन यहां किया था। वर्ष पर्यंत मंदिर में विभिन्न उत्सव होते हैं लेकिन सारंगपाणि स्वामी का रथोत्सव काफी विशेष है। तमिल माह चित्तिरै में मंदिर के जुड़वां रथ पर भगवान की सवारी निकलती है। यह रथ तमिलनाडु का तीसरा सबसे बड़ा रथ है और प्रत्येक का वजन 300 टन है।
(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)