
डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
कुंभकोणम से पांच किमी दूर स्वामीमलै का भगवान मुरुगन के छह प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भी कावेरी के तट पर है। मंदिर में स्थापित का विग्रह का नामकरण स्वामीनाथ स्वामी पर हुआ है। तंजावुर जिले में यह एकमात्र पर्वत है। मुरुगन का निवास पर्वतों पर ही माना जाता है। मंदिर साठ फीट की ऊंचाई पर है। पहाड़ी की तलहटी में उनके पिता शिव व मां पार्वती का मंदिर है। मंदिर के तीन प्रवेश द्वार हंै और इतने ही बड़े गुम्बद हैं। मुरुगन के दर्शन के लिए साठ सीढियां चढनी होती हंै जो साठ तमिल वर्षों का संकेत है। सालाना आयोजित होने वाला वैकाशी विशाखम फेस्टिवल आकर्षण का केंद्र है जिसमें आस-पड़ोस के हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं।
पौराणिक कथा
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान मुरुगन ने पिता शिव को यहां प्रणव मंत्र ओम का अर्थ सिखाया था और वे स्वामीनाथ स्वामी कहलाए। कहा जाता है कि दूसरी शताब्दी के संगम साहित्य में इस मंदिर की उपलब्धता का वर्णन है। जिसका जीर्णोद्धार चोल शासक प्रांतक प्रथम ने किया था। मंदिर को 1740 के एंग्लो-फे्रंच व हैदर अली के बीच हुए युद्ध में काफी क्षति पहुंची थी। फिलवक्त इसका प्रशासन सरकार के देवस्थान विभाग के हाथ में है। एक जनश्रुति यह भी है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने मुरुगन का कैलाश पर्वत पर अपमान किया। बालक मुरुगन इससे नाराज हो गए। उन्होंने ब्रह्मा से पूछा कि उन्होंने सृष्टि की सर्जना किस तरह की। ब्रह्मा का जवाब था वेदों की सहायता से। फिर बालक मुरुगन ने ब्रह्मा से कहा कि वेदों से किसी वर्ण का उच्चारण करे।
ब्रह्मा ने पवित्र वर्ण ओम जिसे प्रणव मंत्र कहा जाता है का उच्चारण किया। मुरुगन ने तत्काल ब्रह्मा को रोका और इस शब्द का आशय पूछा। ब्रह्मा जवाब नहीं दे सके और मुरुगन ने उनके भाल पर बंधी मुष्ठिका से चोट की तथा उनको कैदी बना दिया। फिर वे स्वयं सृष्टि का सृजन करने लगे। ब्रह्मा को गायब पाकर देवताओं में हडकम्प मच गया। वे विष्णु के पास गए गुहार की कि मुरुगन की कैद से ब्रह्मा को आजाद कराएं। विष्णु भी कुछ नहीं कर सके और अंत में ब्रह्मा को बचाने के लिए शिव की शरण में गए।
शिव ने मुरुगन से ब्रह्मा को छोडने को कहा। उन्होंने मना कर दिया कि वे ओम का मतलब नहीं जानते। फिर शिव ने मुरुगन से अर्थ स्पष्ट करने को कहा। मुरुगन ने उनको ओम का आशय समझाया और भगवान शिव एक छात्र की भांति सुनते रहे। इसी कारण मुरुगन का नाम स्वामीनाथन पड़ा जिसका तात्पर्य शिव के अध्यापक से है। इसी वजह से मुरुगन की सन्निधि शिव से ऊपर है। उनको बालमुरुगन नाम से भी पुकारा जाता है।
मंदिर संरचना
मंदिर की अवस्थिति द्वितीय सदी की है। मंदिर का निर्माण कृत्रिम पर्वत पर हुआ है। तमिल भाषा में इसे कट्टमलै कहा जाता है। इस स्थल का अन्य नाम तिरुवेरगम है। मंदिर के तीन गोपुरम निचले, मध्य और पर्वत पर है। गर्भगृह में स्थित मुख्य विग्रह का आकार ६ फुट का है। इसमें स्वर्ण कवच और हीरा जड़ा है। मंदिर के पहले मंजिल यानी शुरुआती तीस सीढियों के गलियारे में दक्षिणामूर्ति, दुर्गा, चंडीकेश्वर और स्वामीनाथस्वामी की उत्सव मूर्ति है। साथ ही भगवान शिव जो यहां सुंदरेश्वरर नाम से पुकारे जाते हैं शिवलिंग रूप में स्थापित है। दूसरे गलियारे में विवाह मण्डप और मंदिर का रथ है। यहां हर महीने कोई विशेष आयोजन होता रहता है। मुरुगन के उत्सवों की भरमार रहती है। रोजाना छह अनुष्ठान होते हैं। उत्सव के दिनों में हजारों की तादाद में श्रद्धालु उमड़ते हैं। मंदिर के पास ही सरोवर भी है। हालांकि उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। देवस्थान विभाग के अधीन होने के बाद भी कमियां तो नजर आ ही जाती है। कुंभकोणम से यहां के लिए काफी बस सेवाएं हैं। एक स्टेशन भी है जहां कुछेक गाडियां ही रुकती है। यहां यातायात की सुविधा खासकर रेल नेटवर्क को मजबूत किए जाने की जरूरत है।
(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)
तमिलनाडु आध्यात्मिक संस्कारों की भूमि है, जिसका प्रतीक यहां के अति प्राचीन मंदिर हैं। प्रत्येक मंदिर अपने आप में मूर्त इतिहास है। यह शिल्प के अद्भुत उदाहरण हैं। मंदिरों की विरासत का राज्य के पर्यटन में भी अमूल्य योगदान है। लेखकर डॉ. पीएस विजयराघवन ने अपनी इस संकलित पुस्तक में मंदिरों पर आमजन की आस्था और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला है। सं.