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डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)

कुंभकोणम के स्वामीमलै से चार किमी दूर स्थित आदनूर में भगवान विष्णु का मंदिर है। इसमें आंडअलक्कुम अय्यन भगवान शयनावस्था में प्रतिष्ठित हैं। यह मंदिर 108 दिव्य क्षेत्रों में है। मंदिर का प्रशासन अहोबिल मठ के अधीन है। मंदिर का महात्म्य यह है कि यहां विराजे भगवान मापक उपकरण से मनुष्य की अच्छाई-बुराई का आकलन करते हैं।

संरचना व कहानी

मंदिर की संरचना काफी पुरानी है। हाल में इसका नवीनीकरण कराया गया और कुंभाभिषेक हुआ। आदनूर नाम भी अतिप्राचीन है। तमिल में आ का आशय गाय से है। दऩऊर यानी उसके स्थल से है। यह क्षेत्र गौ माता कामधेनु को समर्पित है। कच्छप अवतार के वक्त समुद्र मंथन से कामधेनु की उत्पत्ति हुई। कामधेनु सर्व इच्छापूर्णी मानी जाती हैं। कामधेनु को स्वर्गाधिपति देवराज इंद्र को उपहार स्वरूप भेंट कर दिया गया। कामधेनु ने आदनूर में भगवान विष्णु की तपस्या की और उनके साक्षात् दर्शन किए। इस वजह से यह क्षेत्र आदनूर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। भगवान विष्णु की पूजा यहां आंडअलक्कुम अय्यन भगवान और लक्ष्मी की रंगनायकी तायार के रूप में होती है।
भगवान यहां शयन मुद्रा में है उनके सिरहाने मापक यंत्र है और शीर्ष के बायीं तरफ ताड़ की पत्ती और लिखने का उपकरण है। मान्यता है कि महाविष्णु परमात्मा है और सभी मनुष्य के हृदय में विराजमान हैं। वे सभी जीवात्माओं की गतिविधियों पर नजर और उनका हिसाब रखते हैं। ताड़ की पत्ती व लिखने के उपकरण के जरिए भगवान जीवात्माओं के अच्छे-बुरे कर्म का लेखा-जोखा करते हैं। इस वजह से विष्णु का नामकरण आंड अलक्कुम अय्यन हुआ। विष्णु सूर्य की किरणों से पूरी पृथ्वी को देखते हैं। सूर्य रूपी दृष्टि से वे पूरे विश्व का अवलोकन और मापन करते हैं। इसी कारण से इसका ऐतिहासिक नाम आडवनऊल्ल ऊर था। आडवन का अर्थ सूर्य से है। जीवात्माओं के कर्मों की विवेचना आदनूर में भगवान करते हैं। इसलिए उनको पडीअलक्कुम परमपदयालु भी कहा गया है। कालांतर में नाम परिवर्तित होकर आदनूर हो गया। मंदिर के सरोवर का नाम सूर्य पुष्करिणी है।

गर्भगृह में शिव और आलवार

कामधेनु के लिए अवतरित हुए भगवान ने वैष्णव संत तिरुमंगै आलवार को भी यहां दर्शन दिए। आलवार ने उनकी नालायर दिव्यप्रबंधम में स्तुति की है। तिरुमंगै आलवार की मूर्ति गर्भगृह में भगवान के चरणों के पास है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां आलवार संत की मूर्ति गर्भगृह में है। तिरुमंगै आलवार की कहानी इस प्रकार है कि उन्होंने भगवान से धन मांगा कि श्रीरंगम मंदिर के निर्माण में उनकी सम्पत्ति समाप्त हो चुकी है। मजदूरों को भुगतान करना है। आकाशवाणी के रूप में भगवान ने उनको कोल्लीडम नदी के तट पर आने को कहा। वहां एक व्यापारी उनको मिला।
व्यापारी ने आलवार से कहा कि उसके पास धन नहीं है लेकिन जो मापक यंत्र है उसके जरिए वह भुगतान कर सकता है। इस मापक यंत्र से वह रेत तोलकर देगा। जिस मजदूर के कर्म अच्छे होंगे उसके लिए यह सोने में तब्दील हो जाएगा। वहां कार्यरत मजदूरों ने इसे छल समझा और व्यापारी को भगाने लगा। व्यापारी वहां से भागा और उनके पीछे तिरुमंगै आलवार। व्यापारी वहां से आदनूर आकर रुका और तिरुमंगै आलवार को मूल रूप में दर्शन दिए। भगवान शिव ने एक बार ब्रह्मा का एक सिर अलग कर दिया। यह सिर उनके हाथ से चिपक गया जिसे वे हटा नहीं सके। उन्होंने अग्नि देव से इसे जलाने को कहा वे भी असमर्थ रहे। ब्रह्म हत्या के पाप से यह सब हो रहा था। शिव ने यहां विष्णु की आराधना की और इस पाप से मुक्त हुए।
गर्भगृह में भगवान विष्णु के पास शिव का भी विग्रह है। शिव के अलावा कामधेनु, भृगु ऋषि व तिरुमंगै आलवार की भी मूर्तियां हैं। मान्यता है कि विष्णु के वैकुंठ वास में दो स्तम्भ हैं जिनसे लिपटने पर जीवात्मा के पाप नष्ट होते हैं। ऐसे ही दो स्तम्भ इस मंदिर में भी है। ये ही स्तम्भ श्रीरंगम में भी हैं। मंदिर के गुम्बद अर्थात विमानम का नाम प्रणव विमानम है।

(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)

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