vallvilramar

डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)

कुंभकोणम से बारह किलोमीटर दूर स्थित भगवान विष्णु का श्री वल्लविल रामर मंदिर तिरुपुल्लबुदंगुड़ी में स्थित है और आदनूर के आंडअलक्कुम अय्यन मंदिर से दो किमी की दूरी पर है। यह मंदिर हजारों साल पुराना है। मंदिर की कहानी रामायण काल से जुड़ी है। भगवान राम ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार किया था। इसी कथा पर भगवान विष्णु का एक मंदिर कांचीपुरम जिले के तिरुपुटकुली में है। मंदिर का प्रशासन अहोबिल मठ के अधीन है। मंदिर के नैत्यिक विधि-विधान व अनुष्ठान वैगानसम आगम शास्त्र के आधार पर होते हैं।

इतिहास और संरचना

स्वामीमलै से छह किमी दूर स्थित इस मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। वल्लविल रामन मंदिर विशाल प्रांगण में स्थित है जिसके बाहरी गलियारे में मठ के पूर्व अयगीयसिंगर का वृंदावन (समाधि स्थल) भी है। गर्भगृह और गलियारे के दीवारों पर उपलब्ध शिलालेख इस बात का इशारा करते हैं कि यह मंदिर पाण्ड्य शासकों के समय में भी था। फिलहाल इसका प्रशासन अहोबिल मठ के पास है। हाल में मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद इसका कुंभाभिषेक कराया गया।
यह वैष्णव सम्प्रदाय के १०८ दिव्यदेशों में शामिल है। मंदिर की आलौकिकता व भव्यता का वर्णन तिरुमंगै आलवार ने अपने भक्ति काव्य में किया है। मंदिर की दीवारों पर रामायण काल में सीता अपहरण के बाद जटायु के रावण के साथ हुए युद्ध की छवियां हैं। गलियारे में तनिकोविल तायार हेमामभुजवल्ली की अलग सन्निधि हैं जो लक्ष्मी का रूप है। उसके पास ही योग नरसिंहर की सन्निधि हैं जिनको उद्योग नरसिंहर भी कहा जाता है। पास ही भगवान राम की चरण पादुका है और इसके ठीक सामने अति प्राचीन पुणै मरम (वृक्ष) है। जनश्रुति है कि सीता की तलाश में निकले राम ने इस वृक्ष के नीचे आराम किया था। मंदिर के पीछे सरोवर है जिसे जटायु पुष्करिणी कहा जाता है।

मंदिर की कहानीः जटायु का संस्कार कर पितृ ऋण को पूरा किया
भगवान राम जब लक्ष्मण के साथ यहां आये तो पक्षीराज जटायु को मरणावस्था में देखा। जटायु ने रावण द्वारा सीता हरण की कहानी कही और अंतिम संस्कार की विनती की। वनवास की वजह से भगवान राम अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार नहीं कर सके थे। यहां जटायु का संस्कार कर पितृ ऋण को पूरा किया। परिपाटी के अनुसार इस कार्य में भार्या की जरूरत होती है। वैदेही के साथ नहीं होने की वजह से भगवान राम ने लक्ष्मी के दूसरे रूप भूदेवी के साथ पितर कार्य पूरा किया। इसलिए इस स्थल को जटायु मोक्ष स्थल भी कहा जाता है। पुणै वृक्ष के नीचे ही भगवान राम ने तिरुमंगै राजा को शंख चक्र के साथ दर्शन दिए।
मंदिर के पुरोहित गोपाल भट्टर ने बताया कि अधिकांश मंदिरों में भगवान राम के विग्रह खड़ी अवस्था में होते हैं लेकिन यहां वे शयन अवस्था में हैं। इसका कारण भगवान राम यहां आराम कर रहे थे। उस वक्त उन्होंने एक राजा को चार भुजाओं सहित शंख चक्र के साथ दर्शन दिए। ऐसी उत्सव मूर्ति कहीं भी देखने को नहीं मिलती। भगवान राम हमेशा तीर व कमान के साथ दर्शन देते हैं। मूल विग्रह से निकली कमलनाल पर ब्रह्मा विराजित हैं। उनके चरणों में लक्ष्मण, हनुमान, जटायु और भूदेवी को वे दर्शन देते हैं। इसे बुध ग्रह निवारण स्थल के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। भगवान वल्लविल रामन की उत्सव मूर्ति रामन की है जो उभय नाचीयार के साथ प्रतिष्ठित है।

(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)

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