
-रवि जैन-

कौड़ी के दाम जमीन मिली , साम्राज्य खड़ा किया और फिर मुड़ कर नहीं देखा। अदालत,राज निजाम और सरकारी संगठन सब बेबस है। जयपुर में 28 प्राइवेट हॉस्पिटल को रियायती दर पर जमीन मिली। राज्य में यह संख्या और भी ज्यादा है। इस जमीन आवंटन के साथ शर्तें भी थीं। लेकिन प्राइवेट हॉस्पिटल न शर्त मानते है न किसी सत्ता की परवाह करते हैं।
सरकार ने जमीन आवंटित करते वक्त इन अस्पतालों के साथ एमओयू किया था। इसके तहत 25 प्रतिशत बीपीएल का बिना पैसे इलाज दवा करेंगे। अपने हॉस्पिटल में एक घंटे की ओपीडी की पुख्ता व्यवस्था करेंगे जिसमे गरीब मरीजों के लिए फ्री मेडिकल चेकअप होगा। साथ ही 10 बेड गरीब परिवारों के मरीजों के लिए सुरक्षित रखेंगे। शिकायतें मिलती रही हैं। न पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार न ये सरकार कुछ कर पाई। 2014 में सरकार ने घोषणा की थी कि प्राइवेट हॉस्पिटल में हेल्प डेस्क बनेगी और रोगी मित्र तैनात होंगे। पर हालात जस के तस है।
रियायती दर की जमीन पर हॉस्पिटल बुलंदी से खड़ा है। हॉस्पिटल अपने परिसर में दुकान ,केंटीन, मेडिकल स्टोर और साइकिल स्टेंण्ड के लिए जगह किराये पर देते हैं। अच्छी आमदनी होती है। केंद्र सरकार ने लोक सभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि दिल्ली में 62 हॉस्पिटलों को रियायती जमीन आवंटित हुई है। सरकार ने 1986 में निजी हॉस्पिटल के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किये। कहा इसमें एक तिहाई इनडोर और 40 प्रतिशत ओपीडी निशुल्क होगी। अंततः बात होते होते 1996 में करार हो गया। सरकार ने भी बड़ी राशि का निवेश किया।
भारत के कम्पीटिशन कॉमिशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चुनिंदा बड़े अस्पतालों ने लोगो से हद से ज्यादा पैसा वसूल किया है। वे अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग कर रहे हैं। इनमे प्रमुख हॉस्पिटल शामिल है। अदालते कई कई बार इन अस्पतालों पर टिप्पणी कर चुकी है और आदेश जारी कर चुकी है। 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने शर्ताे के मुताबिक जरूरतमंदों को इलाज की सुविधा न देने के लिए 2 लाख का जुर्माना लगाया। पर क्या फर्क पड़ता है। इन अस्पतालों की शृंखला में कई कई हॉस्पिटल है। इनके लिए आपदा अवसर लेकर आती है।
मुंबई में तो एक बडे अस्पताल में डॉक्टरों के नाम एक परिपत्र जारी कर कहा कि मरीज भेजने पर कट मिलेगा। 40 भर्ती पर एक लाख , 50 पर डेढ़ लाख और 75 से पार पर ढाई लाख। हर पेशे में अच्छे बुरे सब तरह के लोग होते है। डॉ हिम्मतराव महाड में प्रैक्टिस करते है। जब एक डायग्नोस्टिक सेंटर ने कट की राशि भेजी तो उन्हें यह बहुत बुरा लगा। उन्होंने महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल में शिकायत दर्ज कराई। कौंसिल ने हॉस्पिटल को फटकार लगाई। हॉस्पिटल ने माफ़ी मांगी।
आंकड़े है 7 प्रतिशत आबादी इलाज का खर्च उठाते गरीबी रेखा के नीचे आ जाती है। 23 प्रतिशत इतने लाचार है कि इलाज का खर्च नहीं उठा पाते है। इलाज का भार हर साल 55 मिलियन को निर्धनता की ओर धकेल देता है। जब सरकारे बड़े नामो का कुछ नहीं कर पा रही है तो उखड़ती सांस और फ़टी जेब से हॉस्पिटल की देहरी पर पहुंचा आदमी क्या कर लेगा ? सरकारी हॉस्पिटल गंदे है ,सीलन और बदबू है। चमक दमक नहीं है। मगर जब कोरोना ने दस्तक दी ,ये ही अस्पताल खुले मिले।
उड़ीसा के बुर्ला में डॉ शंकर रामचंदानी एक रूपये की फीस लेकर इलाज करते है। दूसरी तरफ ऐसे भी है जो एक रूपये में जमीन लेकर बेबस भारत से मुँह मोड़ लेते है। इसी भूभाग पर एक भारत है ,एक इंडिया है।
(लेखक रोड सेफ्टी एक्सपर्ट एवं एक्टिविस्ट हैं। यह उनके निजी विचार हैं)
प्राइवेट अस्पतालों की इससे भी बेहतर लूट है,मरीज के अनेक प्रकार के लैब टेस्ट कराते जाते हैं, बाहर की लैब टेस्ट को बेकार बता रिजेक्ट कर देते हैं.अस्पताल में भर्ती रोगी को डाक्टरों की विजिट के नाम पर लंबी लिस्ट देखी जा सकती है.आपरेशन के मामले में कई तरह के चार्जेज मरीज से वसूले जाते हैं
सारी बातें आदमी के जमीर की हैं, उसकी कमी हर जगह दिखाई देती है, जो कि हर महकमे/समाज में भरे पड़े हैं। कुछ लूट मचाने वाले भी हैं तो कुछ सेवाभावी भी हैं। एक सच यह भी है कि सब दूसरों की कमियां अच्छी तरह जानते हैं लेकिन अपने गिरेबां में कौन झांके।