-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
ऐतिहासिक भारत की भव्यता देखनी हो तो बाडोली आइये ! शिल्प कला का चरमोत्कर्ष देखना हो बाडोली आइये ! आध्यात्म की अनुभूति चाहिए तो बाडोली आइये ! दसवीं शताब्दी के आसपास के हमारे पूर्वजों का शारारिक शौष्ठव का अनुमान लगाना हो तो बाडोलीआइये ! उस जमाने के केश विन्यास, श्रंगार, आभूषण डिजाइन देखना हो बडौली आइये ! अतीत से मंत्रमुग्ध होना है तो यहां चले आइये।

बाडोली के मंदिरों का समूह राजस्थान के प्रमुख नगर कोटा से लगभग 50 किलोमीटर दूर दक्षिण में चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा से मात्र 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह स्थल चंबल तथा बामिनी नदी के संगम से मात्र पाँच किलोमीटर दूर है। बाडोली प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला की दृष्टि से राजस्थान का एक प्रसिद्ध स्थल है।

यहाँ स्थित मन्दिर समूह का काल 8वीं से 11वीं शताब्दी तक का है। नवीं तथा दसवीं शताब्दी में यह स्थल शैव पूजा का एक प्रमुख केंद्र था, जिनमें शिव तथा शैव परिवार के अन्य देवताओं के मंदिर थे। यहाँ स्थित मन्दिर समूह में नौ मन्दिर हैं, जिनमें शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मन्दिर आदि प्रमुख हैं।

बाडोली के 9 मंदिरों में से आठ दो समूहों में हैं। मंदिर संख्या 1-3 जलाशय के पास हैं एवं अन्य पाँच मंदिर इनसे कुछ दूर एक दीवार से घिरे अहाते में स्थित है जबकि एक अन्य मंदिर उत्तर-पूर्व में लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित हैं। इसके अलावा कुछ अन्य मंदिरों के अवशेष भी यहाँ विद्यमान हैं।

यहाँ के इस मन्दिर समूह में शिव मन्दिर प्रमुख है, जो घटेश्वर शिवालय के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में शिव के नटराज स्वरूप को उत्कृष्टता से उत्कीर्ण किया गया है। यह उड़ीसा शैली के मन्दिरों से मिलता-जुलता है। अलंकृत मण्डप, तोरण द्वार, मूर्तियों की भंगिमाएँ, लोच व प्रवाह, शिव का बलिष्ठ स्वरूप आदि इसकी विशिष्टता है।

इतिहासविदों के अनुसार बाडोली के मंदिरों का निर्माण सम्राट मिहिर कुल हूण ने करवाया जो परम शिव भक्त थे।

बकौल कर्नल टॉड –
इन मंदिरों को सर्वप्रथम कर्नल जेम्स टॉड ने सन 1821 ई. में खोजा था। बाडोली के मन्दिरों को देखकर कर्नल टॉड ने आश्चर्यपूर्वक टिप्पणी की थी कि ‘उनकी विचित्र और भव्य बनावट का यथावत् वर्णन करना लेखनी की शक्ति से बाहर है। यहाँ मानों हुनर का ख़ज़ाना ख़ाली कर दिया गया है।’

Beautiful place of Rawatbhata