
विभीषण
-प्रकाश केवडे-

था मैं रावण का सच्चा
हित चिंतक
था उसकी विद्वता का घोर प्रशंसक
था मैं उसकी अपार शक्ति का अनुशंसक।
नहीं था उसका अनुयायी
चाकर कभी
नहीं रहा उसके पापों में
सहभागी कभी
नहीं रहा उसका झूठा
प्रशंसक कभी ।
ज्ञात था रावण का
हित अहित मुझे
ज्ञात थी श्रीराम की
अपरिमित शक्ति मुझे
ज्ञात था श्रीराम
शरण में अगर जाऊंगा
ज्ञात था तो सदा
धोखेबाज कहलाउंगा ।
रावण के शासन का अंत
होना ही था
मुझे ही भेदी का कलंक
सदा ढोना ही था
नहीं दुख मुझे भ्रात
द्रोह का
अभिमान है मुझे सत्य
के प्रति स्नेह का।
रचियता प्रकाश केवडे
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