
हम मंडी मजदूर
-महेन्द्र नेह-
(कवि, गीतकार और समालोचक)
साधो, हम मंडी मजदूर ।
हम रहते श्रम से, वे कहते दारू में हैं चूर । ।
अनगिन भवन चुने पर हमको झोंपड़िया भी दूर।
छीन लिया ठेकेदारों ने इन चेहरों का नूर ।।
शिक्षा देते पंडित-काजी त्याग करो भरपूर ।
कहते अगले जनम मिलेंगी तुम्हें स्वर्ग में हूर । ।
ऊँची से ऊँची मंजिल चढ़ दुनिया है मगरूर ।
हम अब भी फुटपाथों पर ही जीने को मजबूर ।।
बहुत सह चुके ना-इंसाफी मार समय की क्रूर ।
नहीं बनेंगे घाव हमारे अब हर्गिज नासूर । ।
ये मंडी ये मोल-भाव दासों जैसा दस्तूर।
कान खोल कर सुने जमाना हमें नहीं मंजूर । ।
हालात और सच्चाई का बयान
सही कहा