ऊँची से ऊँची मंजिल चढ़ दुनिया है मगरूर । हम अब भी फुटपाथों पर ही जीने को मजबूर ।।

mahendra neh
महेन्द्र नेह
हम मंडी मजदूर

-महेन्द्र नेह-

(कवि, गीतकार और समालोचक)

साधो, हम मंडी मजदूर ।
हम रहते श्रम से, वे कहते दारू में हैं चूर । ।

अनगिन भवन चुने पर हमको झोंपड़िया भी दूर।
छीन लिया ठेकेदारों ने इन चेहरों का नूर ।।

शिक्षा देते पंडित-काजी त्याग करो भरपूर ।
कहते अगले जनम मिलेंगी तुम्हें स्वर्ग में हूर । ।

ऊँची से ऊँची मंजिल चढ़ दुनिया है मगरूर ।
हम अब भी फुटपाथों पर ही जीने को मजबूर ।।

बहुत सह चुके ना-इंसाफी मार समय की क्रूर ।
नहीं बनेंगे घाव हमारे अब हर्गिज नासूर । ।

ये मंडी ये मोल-भाव दासों जैसा दस्तूर।
कान खोल कर सुने जमाना हमें नहीं मंजूर । ।

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विवेक मिश्र
विवेक मिश्र
2 years ago

हालात और सच्चाई का बयान