अभी था हौसला उसका सलामत परिन्दा इस कदर घायल नहीं था

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फोटो अखिलेश कुमार

वो सन्दल नहीं था

-चांद शेरी-

chand sheri
चांद शेरी

कहीं आकाश पर बादल नहीं था
घटा की आंख में काजल नहीं था

ये जहरीले शजर नफरत की बेलें
यहां पहले तो ये जंगल नहीं था

नजर कोसों से आता था हमें जो
वो अब उस गांव में पीपल नहीं था

फटे अखबार पर सोए हुओं को
खयाले बिस्तरे मखमख नहीं था

थी सन्दल सी बजाहिर उसकी सूरत
मगर सीरत का वो सन्दल नहीं था

अभी था हौसला उसका सलामत
परिन्दा इस कदर घायल नहीं था

भिगोया उसको ‘शेरी’ आंसुओं ने
वो भीगा दूध से आंचल नहीं था.

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

वो भीगा दूध से आंचल नहीं था… नज़्म की इन पंक्तियों में शायर चांद शेरी ने जिंदगी का निचोड़ पेश कर दिया है