
– बृजेश विजयवर्गीय-

शहरों में अनावश्यक सीमेंटेशन पेड़ों का दम घांेट रहा है। यह बात किसी जिम्मेदार अधिकारी के समझ में आती भी हो तो वह कुछ करने की स्थिति मंे नहीं लगता है। आने वाली पीढ़ी चाह कर भी पेड़ लगा नहीं सकती, इसका पक्का इंतजाम हमारे प्रशासन ने कर दिया है। पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनी की प्रशासन द्वारा अनदेखी गंभीर चिंताजनक है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी इसे अनुचित मान कर सरकारों को निर्देशित किया है, लेकिन न्यायालय की चेतावनियों को भी विकास की चकाचौंध में अनसुना किया जा रहा है। कोटा शहर में जहां आईएल की जमीन पर ऑक्सीजोन बनाए जाने के दावे किए जा रहे हैं उसी शहर में ऑक्सीजन के स्त्रोत पेड़ों को मारने का षडयंत्र भी साथ-साथ ही चल रहा है। इस बारे में पर्यावरण संगठनों की ओर से जिला कलेक्टर को ज्ञापन भी दिए गए हैं। चेतावनियों को नजर अंदाज करना प्रशासन की आदत में आ गया है।
क्या होगा नुकसान?
सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ हिस्टोरिकल एंड इंकोलॉकिल रिसोर्सेज के संचालक वनस्पति शास्त्री डॉ कृष्णेंद्र सिंह का कहना है कि पेड़ों को सीमेंट इंटरालॉकिंग, टाईल्सों में दबाने से पेड़ों की वृद्धि रूक जाती है और उनको जमीन से पोषण नहीं मिलता। वर्षा जल जमीन में नहीं जाता जिससे भूमि अनुपजाऊ होने के साथ ही पेड़ पौधे सूख कर मर जाते हैं। पेड़ मरने से पक्षी भी पालायन कर जाते हैं। सीमेंटेशन से वातावरण में तापमान बढ़ता है जिससे गर्मी में वृद्धि होने से जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है और बीमारियां पनपती है जो कि आर्थिक चोट भी पहुंचाती है।
वृक्षों को सीमेंट से मुक्त करने का अभियान
पिछले वर्ष शहर में विभिन्न स्थानों पर सीमेंट कंकरीट में दबे वृक्षों को सीमेंट से मुक्त करने का अभियान शुरू किया गया लेकिन सरकारी स्तर पर तो लगता है कोई सोचते समझने का ही तैयार नहीं है। विकास कार्यों के नाम पर सीसी सड़कों के किनारे अनावश्यक सीमेंटेशन के कारण पेड़ों का दम घुट गया है। नागरिकों की मांग पर तलवंडी में सोमेश्वर महादेव मंदिर के पास से सीमेंट हटाओं पेड़ बचाओ अभियान शुरू किया गया था उसका भी नगर निगम और नगर विकास न्यास पर असर नहीं हुआ। पूर्व में चम्बल संसद,जल बिरादरी, बाघ- चीता मित्रों के अलावा कोटा एनवायरमेंटल सीनेटेशन सोसायटी ने भी जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया, जिसे मुख्यमंत्री तक भेजा गया फिर भी प्रशासन पर जूं नहीं रेंग रही। जागरूक नगरिेकों को कहना है कि सीमेंट के कारण पेड़ों के सूखने का खतरा है। कई पेड़ सूख चुके हैं। एडवोकेट विजय ने कहा कि नगर निगम और नगर विकास न्यास को पूरे शहर में ही इस प्रकार का अभियान चला कर पेड़ों को बचाने का काम करना चाहिए अन्यथा नागरिकगण, सामाजिक संस्थाऐं इस कार्य को हाथ में लेंगी। शहर में पेड़ लगाने का कोई उचित स्थान ही नहीं बचा जो कि स्मार्ट शहर के विकास में बाधक है।
सूक्ष्मजीवों को पर्याप्त नमी और वायु नहीं मिल पाती
पेड़ पौधों के चारों ओर कंक्रीट सीमेंट की मोटी परत बिछाकर इसे पक्का करने का एक और अप्रत्यक्ष प्रभाव होता है। वास्तव में मृदा में विभिन्न प्रकार का सूक्ष्मदर्शीय जीव पाए जाते है जो मृदा में सड़े गले कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करके मिट्टी में पोषक तत्वों में वृद्धि करके इसकी की उर्वरता में वृद्धि करते हैं। इन पोषक तत्वों का उपयोग पेड़ पौधों द्वारा किया जाता है। किंतु सीमेंटेशन करने से इन सूक्ष्मजीवों को पर्याप्त नमी और वायु नहीं मिल पाती अर्थात इनके लिए परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं और ये धीरे-2 उस मृदीय पर्यावरण से समाप्त हो जाते हैं। अतः पोषक तत्व भी खत्म होने लगते हैं और पादपों की वृद्धि पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है।
पेड़ों की जड़ों को भी श्वसन के लिए ऑक्सीजन की जरूरत
आज के शहरीकरण में बोरवेल द्वारा पानी प्राप्त करना आम प्रचलन बनता जा रहा है, जिसके कारण भू जलस्तर गिर रहा है। इसे जमीन को पक्का करने पर इसमें बारिश का पानी भी प्रक्षालित नहीं हो पाता और भूमिगत जल स्तर और ज्यादा नीचे जा रहा है। इसके कारण कई इलाके डार्क जोन में जा चुके है। पेड़ों की जड़ों को भी श्वसन के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है जो उन्हे मृदिय वातावरण से प्राप्त होती है, और मिट्टी में यह वायु बाह्य/वायुमंडलीय वातावरण से प्राप्त होती है किंतु जमीन को पक्का करने के कारण बाह्य और मृदीय वारावरण के मध्य यह संपर्क टूट जाता है और पेड़- पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन सप्लाई रुक जाती है और वे असमय मर जाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं अध्यक्ष कोटा एनवायरमेंटल सेनीटेशन सोसायटी, संयोजक चम्बल संसद हैं, यह लेखक के निजी विचार हैं)
हमें प्राण वायु देने वाले पेड़ों की ऐसी अनदेखी पहले कभी नहीं हुई। जहां भी हरियाली थी और पक्षी कलरव किया करते थे वो सभी पेड़ विकास की भेंट चढ़ गए। चंद्रेसल रोड पर नाले के किनारे सैकड़ों पेड़ थे जिस पर बया अपने घोंसले बनाते थे, किंग फिशर, ब्लैक विंग स्टिल्ट, पौंड हेरोन, बगुले आदि प्रजनन करते थे सब नाले को पक्का करने के लिए बलि चढ़ा दिए गए। आर्ट गैलरी के सामने जो जंगल था वो भी विकास की भेंट चढ़ गया।
सब पैसा बनाने में लगे हैं पर्यावरण की किसी को कोई चिंता नहीं है।