
डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
वैदीश्वरन मंदिर अथवा पुल्लीरुक्कूवेलूर, तंजावुर और कुंभकोणम के पास सबसे महत्वपूर्ण शिव मंदिरों में से एक है। सिरकाली से यह मंदिर सात किमी है। भगवान शिव के श्पाडल पेट्र स्थलम्य में शामिल इस मंदिर के भगवान शिव को वैदीश्वरन कहा जाता है जो संस्कृत के वैद्य और ईश्वरन से बना है। यानी वैद्यराज के भगवान। इनको रोगनाशक कहा जाता है। मान्यता है कि वैदीश्वरन की पूजा करने से रोग नष्ट होते हैं। यह नवग्रह के नौ मंदिरों में से मंगल ग्रह का प्रतीक है। ताड़ के पत्रों पर आधारित नाड़ी ज्योतिषशास्त्र के लिए भी यह प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर स्थित सिद्धामृतम सरोवर के जल को अमृत समान माना गया है। सातवीं सदी के शैव संतों ने इस मंदिर का महिमागान किया है।
इतिहास और संरचना
मंदिर के निर्माण और मौजूदगी को लेकर मिले शिलालेख चोल शासकों के दौर के हैं। मंदिर से जुड़े पांच शिलालेख राजा कुलोतुंग चोल प्रथम (१०७०-११२०) के शासनकाल के हैं। मंदिर का प्रशासन धर्मपुरम आदिनाम मठ के पास है। यह मठ मईलाडुदुरै में है। मंदिर का पांच मंजिला गोपुरम है। केंद्रीय सन्निधि भगवान वैदीश्वरन की है जो लिंग रूप में अवस्थित हैं। मंदिर के गर्भगृह से जुड़े पहले गलियारे में सुब्रमण्य स्वामी, नटराज, सोमस्कंध, अंगरका, दुर्गा, दक्षिणामूर्ति, सूर्य, जटायु व वेदों की छवियां हैं। देवी तयलनायकी यानी तेल धारी की सन्निधि दूसरे गलियारे में है जो दैवीय और औषधिय तेल धारण किए है। विशाल गलियारे में औषधिराज धनवंतरि और अंगरका की पाषाण मूर्तियां हैं। मंदिर का पुरातन वृक्ष भी चमत्कारी औषधिय गुणों से भरपूर है।
जटायु ने दुष्ट रावण से किया युद्ध
यह मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि रामायण के अनुसार जटायु ने दुष्ट रावण से माता सीता को बचाने के लिए युद्ध किया था और इस लड़ाई में उसके दोनों पंख कटकर यहीं मंदिर की जगह पर गिरे थे। सीता की खोज में जब प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ यहाँ पहुँचे, तो जटायु अपने जीवन की अंतिम घडियां गिन रहा था। जटायु ने राम को पूरा वाकया बताया और उनसे प्रार्थना की कि वे स्वयं उसका दाह संस्कार करें। जिस स्थान पर श्रीराम ने जटायु का दाह संस्कार किया, उसे जटायु कुंडम के नाम से जाना जाता है। यह भव्य स्थान मंदिर के अंदर स्थित है तथा किसी भी धर्म के लोग हों, इस कुंडम से विभूति प्रसाद लेते हैं। श्रीराम ने रावण को युद्ध में पराजित किया एवं सीता तथा अन्य साथियों के साथ लौटकर उन्होंने इस भव्य स्थान पर भगवान शिव से प्रार्थना की। देवी शक्ति से भगवान मुरुगा ने वेल शस्त्र प्राप्त किया था एवं इसी शस्त्र से पदमा सुरन नामक असुर का वध किया था। संत विश्वामित्र, वशिष्ठ, तिरुवानाकुरसर, तिरुज्ञानसंबंदर, अरुनागीरीनाथर ने इस स्थान पर भगवान से पूजा-अर्चना की थी। यह भव्य स्थान विशिष्ट है, क्योंकि कुष्ठ रोग से पीड़ित अंगरकन (तमिल भाषा में मंगल ग्रह का नाम) ने भगवान से प्रार्थना की तथा अपनी बीमारी का इलाज किया। अतरू यह स्थान नवग्रह क्षेत्रम में से एक है। जिन लोगों की जन्मकुंडली में मंगल दोष (मांगलिक) है, वे यहाँ आते हैं और अंगकरण की पूजा करते हैं। भगवान शिव अपनी शक्ति तयलनायकी अम्माई, जो अपने साथ थाईलम, संजीवी तथा विल्वा पेड़ की जड़ों की रेत, जिसके मिश्रण से 4,48 0 बीमारियों का इलाज हो सकता है, के साथ इस क्षेत्र में आए तथा रोग से पीडि.त भक्तों को मुक्त किया और वैद्यनाथ स्वामी के नाम से जाने गए। यह तमिलनाडु के नवग्रह मन्दिर मंे मगल ग्रह का मन्दिर है। माना जाता है कि लाखों लोग इस भव्य मंदिर में दर्शन करने प्रतिवर्ष आते हैं और अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए यहां प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि भक्तों की मनोकामनाएं यहां पर पूर्ण होती हैं। प्रथाओं के अनुसार एक विशेष प्रकार से दवा बनाई जाती है। यह प्रथा अभी भी प्रचलित है। शुक्ल पक्ष के दिन भक्तों को अंगसंथना तीर्थम (पवित्र जलधर) में स्नान करते हैं। उसी जलाशय से रेत को जटायु कुंडम के विभूति प्रसाद के साथ मिश्रित किया जाता है एवं सिद्धतीर्थम तीर्थम के कुंभ से आप पवित्र जल ले सकते हैं। मंदिर के गुरु के अनुसार भगवान वैद्यनाथर मंगल दोष का भी निवारण करते हैं।
(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)
तमिलनाडु आध्यात्मिक संस्कारों की भूमि है, जिसका प्रतीक यहां के अति प्राचीन मंदिर हैं। प्रत्येक मंदिर अपने आप में मूर्त इतिहास है। यह शिल्प के अद्भुत उदाहरण हैं। मंदिरों की विरासत का राज्य के पर्यटन में भी अमूल्य योगदान है। लेखकर डॉ. पीएस विजयराघवन ने अपनी इस संकलित पुस्तक में मंदिरों पर आमजन की आस्था और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला है। सं.