श्रावण मास और ब्रज के मंदिरो में हिंडोला उत्सव, घटाओं की अनोखी परंपरा

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

बांके बिहारी की देख छटा, मेरौ मन है गयौ लटा पटा।।
मोरमुकुट श्यामल तन धारी,कर मुरली अधरन सजी प्यारी।
कमर में बांधे पीला पटा, मेरौ मन है गयौ लटा पटा।।
पनिया भरन यमुना तट आई, बीच में मिल गए कृष्ण कन्हाई
फोर दियौ पानी कौ घटा, मेरौ मन है गयौ लटा पटा।।
समूचा ब्रज क्षेत्र, श्रावण में चहुं ओर हर्ष उल्लास से भरा हुआ भक्ति भाव में झूमने लगता है, यहां श्रावण की छटा अद्भुत निराली होती है। मानो स्वयं श्रावण अभिषेक करने के लिए आये हैं। वर्षा की नन्ही फुहारों के बीच वन उपवन, कुंज निकुंज में पक्षियों के कलरव सुनाई देती है, मयूरों के झुंड पंख फैलाकर श्रावण के स्वागत में नृत्य करने लगते हैं। चौमासे में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
ब्रज में श्रावण का मतलब है बरसते मेघ, मंदिरों में झूले, हिंडोले, रासलीला, मल्हार गायन, सत्संग, प्रवचन, अभिषेक, कथा भागवत की धूम, भीगता मन, पेड़ों पर पड़े झूलों पर बहू बेटियों के हाथों में खनकती चूड़ियां, खिलते मेहंदी के रंग और चेहरे पर मुस्कान। श्रावण शुक्ल तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है। इस पर्व में मां पार्वती की पूजा का विधान है। हरियाली तीज पर बहू बेटियां हाथों में मेहंदी रचा बागों में झूला झूलती हैं। नई ब्याहता के यहां ससुराल से सिंजारा भी आता है।
विभिन्न प्रांतों, देश विदेश से आए श्रद्धालु पर्यटकों की भीड़ रहती है। मंदिरों में हिंडोले, घटाएं सजाई जाती हैं। हिंडोले मतलब सोने चांदी के झूले, जिसमें ठाकुर जी को झुलाया जाता है। ब्रज में हर मंदिर में हिंडोले /झूले पड़ जाते हैं।
भक्ति के कई #अंग है, इनमें से एक अंग “हिंडोला उत्सव” भी है। मंदिरों में हिंडोले को भक्त नाना प्रकार के फल, फूल, मेवा, चंदन, केले के तने, पत्तों, सुगंधित कलियों, विभिन्न पर्दे, गोटे, रूई, कांच की पिछवाईयों के साथ ही कागज की रंग बिरंगी पन्नियों आदि से सजाया जाता है, जिसे घटा कहते हैं। हमने भी बचपन में द्वारकाधीश, कृष्ण जन्मभूमि मंदिर, रंगेश्वर महादेव आदि कई मंदिरों में इस तरह की घटाओं के खूब दर्शन किए हैं। खूब लंबी कतार होती थी। कभी काली घटा/ हरी घटा/ लाल घटा/लहरिया घटा, बर्फीली घटाएं आदि, निति नए हिंडोले सजाए जाते हैं। हिंडोलों में ठाकुर जी को विराजित किया जाता है, नाना प्रकार की मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। सभी शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है, कांवड़िए / भक्तगण अपनी-अपने श्रद्धा अनुसार अभिषेक पूजा अर्चना करते हैं।
सोने चांदी के विशाल कलात्मक हिंडोले (झूले) यहां ब्रज के मंदिरों की संपन्नता के सूचक हैं।
वैसे तो हर मंदिर में हिंडोले सजाए जाते हैं, लेकिन सबसे आकर्षक वृंदावन “बांके बिहारी जी मंदिर” का हिंडोला ही होता है। हरियाली तीज पर वृंदावन का विश्व विख्यात “बांके बिहारी मंदिर” सभी के आकर्षण का केंद्र रहता है, क्योंकि वर्ष में केवल इसी दिन ठाकुर जी को सोने/ चांदी के बने अत्यंत विशाल 216 किलो वजनी हिंडोले में झुलाया जाता है। भक्तों पर इत्र गुलाब के मिश्रण से फुहार की जाती है। इस दिन साल में एक बार मंदिर में छप्पन भोगों में #घेवर फेनी का भोग लगाया जाता है। वृंदावन के “हिंडोला उत्सव” में ठाकुर जी राधा जी को स्वयं झुलाते हैं। श्यामसुंदर हरियाली तीज पर अपनी प्यारी श्यामा से कहते हैं __
झुक आए बदरा झुक आए बदरा
राधे झूलन पधारो झुक आए बदरा
झुक गए बदरा झुक आए बदरा
साजो सकल श्रृंगार नैना सारो कजरा …
राधे दोऊ कर जोरे तेरे चरण पड़यो
राधे दोऊ कर जोरे तेरे चरण पड़ियो
राधे झूलन पधारो झुक आए बदरा
झुक आए बदरा झुक जाए बदरा…
वृंदावन में ठाकुर राधारमण मंदिर प्रख्यात है। यहां तीज के प्रथम तीन दिन स्वर्ण, अगले तीन दिन रजत और शेष सात दिन फूल पत्तियों से सजाया और झुलाया जाता है।

 

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radha damodar mandir. photo courtesy vrajvrindavan.com

वृंदावन में ही राधा दामोदर मंदिर में तीज से राखी तक “झूलना यात्रा महोत्सव” की अत्यधिक धूम रहती है। ठाकुर जी को काष्ठ के सुसज्जित हिंडोले में झुलाया जाता है। कहते हैं इस मंदिर की चार परिक्रमा करने से गोवर्धन की पूरी सात कोसी परिक्रमा का पुण्य फल प्राप्त होता है।
उत्तर को दक्षिण से जोड़ने वाले वृंदावन का विख्यात “रंग लक्ष्मी मंदिर”( रंग जी मंदिर) में सभी परंपराएं, पंडित पुजारी दक्षिण भारत से हैं। यहां भी चांदी और सोने के हिंडोले सजाए जाते हैं। हिंडोले में श्यामा श्याम के झूलन दर्शन के लिए भीड़ लगी रहती है।
वृंदावन में ही “टेढ़ा खंबा मंदिर” शाहजी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। वर्ष में दो बार रक्षाबंधन और बसंत पंचमी पर ही इस मंदिर के #बसंती कमरे के दर्शन कराए जाते हैं। यहां ठाकुर राधारमण जी के भव्य मूर्ति विराजित हैं, जिनके दर्शन के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। बसंती कमरा कीमती झाड़फानूस, स्वर्णमयी दीवारें, गोलाकार छत पर पच्चीकारी, रंगीन शीशों आदि से सुसज्जित है।
बरसाने में राधारानी की क्रीड़ा स्थली श्रीजी मंदिर में हिंडोला उत्सव, तीज से राखी तक मनाया जाता है। इस दौरान राधा जी के भव्य श्री विग्रह को भव्य स्वर्ण हिंडौले में गीत संगीत की मधुर स्वर लहरियों के साथ झुलाया जाता है। बरसाने के अष्टसखी मंदिर, गोपालकुटी, दादीबाबा मंदिर, मोरकुटीर आदि सभी मंदिरों में हिंडोला उत्सव खूब हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है।
नंदगांव के नंदबाबा मंदिर में ठाकुर जी को विशाल चांदी के हिंडोले में झुलाया जाता है।
श्री कृष्ण के अग्रज दाऊ जी को (दाऊजी गांव के) दाऊ जी मंदिर में श्रावण की शुक्ल एकादशी से शुक्ल पूर्णिमा रक्षाबंधन तक, दाऊजी एवं उनकी भार्या “रेवती मैया” के विग्रह के समक्ष, जगमोहन में 15–15 फुट के स्वर्ण व रजत हिंडोले स्थापित कर दिए जाते हैं। साथ ही स्वर्ण जड़ित दर्पण में पड़ने वाले #प्रतिबिंब को, झूलों में झुलाया जाता है। क्योंकि इन दोनों आराध्यों के विशाल विग्रह होने के कारण हिंडोले में विराजित नहीं किया जा सकते हैं।
इस्कॉन मंदिर में भी राधा कृष्ण की दिव्य जोड़ी को झुलाया जाता है, भोग लगाया जाता है। चमेली आदि सुगंधित फूलों से सजाया, इत्र एवं गुलाब जल का प्रयोग किया जाता है। भक्त गण भक्ति रस में डूबे नजर आते हैं।
मथुरा में द्वारकाधीश, गोकुल के विभिन्न मंदिरों में लगातार एक माह तक अत्यंत श्रद्धा भक्ति के साथ हिंडोले सजाए जाते हैं। मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में सोने का एक व चांदी के दो विशाल झूले हैं। यहां हिंडोला उत्सव प्राय श्रावण कृष्ण द्वितीया से भाद्र द्वितीया तक चलता है। इस दौरान विभिन्न तिथियों पर लाल घटा, गुलाबी घटा, काली घटा, लहरिया घटा आदि का आयोजन किया जाता है। हिंडोला महोत्सव के दर्शन करने देश-विदेश, सुदूर प्रांतों से भक्तगण आते हैं। राधा कृष्ण के अद्भुत रूप माधुर्य का दर्शन सुख प्राप्त कर कृतार्थ होते हैं। समूचा ब्रज श्यामश्यामा मय हो जाता है। इस वर्ष पुरुषोत्तम मास होने के कारण श्रावण मास की अवधि 59 दिनों की रहेगी, जिससे भक्तगणों को भक्ति के लिए और अधिक अवसर मिलेगा। ब्रज क्षेत्र में वास करने लिए तो देवता भी तरसते हैं। धन्य हैं वे लोग जिन्हें यहां रहने का सौभाग्य मिला है। मैं भी स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानती हूं जो यहां जन्म मिला, ब्रज रज में खेलने का, यमुना दर्शन, स्नान, गुरू संतों की कृपा का, नित उत्सव आनंद का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ब्रज में बांके बिहारी की छवि ही ऐसी है यहां आकर मनुष्य सब कुछ भूल जाता है। तभी तो कवि रसखान भी कह उठते हैं __
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरौ, चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि कौ, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरौ करौं, मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
श्रावण मास में पूरे ब्रज में मेला सा लग जाता है, श्याम सुंदर की अलौकिक लीला एक बार फिर जीवंत हो उठती है। जिस तरह महारास में हर गोपी अनुभव करती है, वैसा ही कुछ यहां आने वाला हर भक्त दर्शन करते हुए, हिंडोले में झुलाते हुए श्याम श्यामा, जुगल जोड़ी सरकार के साथ स्वयं को अनुभव करता है।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

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Meena Gaur
Meena Gaur
1 year ago

लाजवाब वर्णन पढ़ कर लगा हिंडोला उत्सव में ही दर्शनों का आनंद ले रहीं हूँ साधुवाद ????

Manu Vashistha
Manu Vashistha
Reply to  Meena Gaur
1 year ago

???????????????? सादर धन्यवाद

Meena Gaur
Meena Gaur
1 year ago

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