
पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के बयान से यही खुलासा होता है
-द ओपिनियन-
क्या पाकिस्तान दिवालिया हो गया है? मीडिया में आई एक खबर के बाद यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है। खबर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के हवाले से आई है। उन्होंने सियालकोट में एक कार्यक्रम में कहा है कि पाकिस्तान पहले ही डिफॉल्ट हो चुका है और इसके लिए पाकिस्तानी सेना, नौकरशाही और राजनेता सहित सभी जिम्मेदार हैं। ख्वाजा आसिफ के बाद एक बात तो साफ है कि पाकिस्तान डिफाल्ट हो चुका है या होने के कगार पर है। वह एक ऐसे मुकाम पर पहुंच चुका है जहां से बाहर निकलने के लिए बहुत इमानदार और समर्पित प्रयासों की जरूरत है।

पाकिस्तान पर आर्थिक संकट की यह तलवार सालभर से भी अधिक समय से लटक रही थी लेकिन न वहां के राजनेता हालात को संभालने के लिए संजीदा हुए और ना ही कोई ऐसा नौकरशाह सामने आए जो तस्वीर बदलने की क्षमता रखता हो। पाकिस्तान का आर्थिक संकट इस बार इतना गहरा है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी तत्काल सहायता देने की बजाय कठोर शर्तों की लम्बी सूची पकड़ा दी है। संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे उसके परम्परागत मित्र भी उसकी मदद करते-करते थक गए हैं। चीन कर्ज तो देता है लेकिन यह कर्जजाल है। श्रीलंका की हालत दुनिया देख चुकी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि हमारी समस्याओं का समाधान पाकिस्तान के पास ही है आईएमएफ के पास नहीं है। पाकिस्तान में कानून और संविधान का पालन नहीं होने के कारण सत्ता प्रतिष्ठान, नौकरशाही और राजनेताओं सहित सभी मौजूदा आर्थिक गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं। बात साफ है आईएमएफ कर्ज दे सकता है लेकिन उसका किस तरह इस्तेमाल किया जाए यह काम तो संबंधित देश का प्रशासनिक तंत्र ही करेगा।
लेकिन पाकिस्तान के रहमुनाओं का तो आतंकवाद को पालने और भारत को दुनिया के हर मंच पर कोसने का एक सूत्री कार्यक्रम है और वे उस पर ही आगे बढ़ते रहे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान इसमें सबसे आगे थे। तुर्की मलेशिया के साथ गठजोड़ कर उन्होंने कश्मीर मसले पर भारत को कोसने के अलावा कुछ नहीं किया। भारत को जख्म देने के पाकिस्तानी राजनेताओं की सनक ही आज पाकिस्तान को इस कंगाली की हालत में ले आई।
पाकिस्तान को उसके पाले हुए आतंकी ही अब जख्म दे रहे हैं। दो दिन पहले कराची में पुलिस प्रमुख के ऑफिस पर हुआ आतंकी हमला इसका ताजा उदाहरण है। तहरीक एक तालिबान पाकिस्तान ने इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है। इस हमले के बाद अब पाकिस्तान अफगान तालिबान पर निशाना साध रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में काबिज होने के बाद पाकिस्तान और तालिबान के रिश्ते खराब ही हुए हैं। व्यापार बढने की जगह आतंकवाद फल फूल रहा है। यह आतंकवाद उसकी आर्थिक हालत सुधरने में भी बाधक बन रहा है।
पाक की चिंता करने के बजाय देशमें बढ़ रही मंहगाई को नियंत्रित करने की चिंता मीडिया तथा विचारकों को करनी चाहिए