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प्रतीकात्मक फोटो

-हरिओम शर्मा-

जयपुर। देशभर में इन दिनों वन्यजीवों के आवास, भोजन और संरक्षण की चर्चा जोरों पर है लेकिन इसके पीछे की हकीकत से भी सभी बाकिफ हैं। जंगल में खासकर वन्यजीवों की आबादी में निरंतर विस्तार होने से जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं। हरित और सघन वन क्षेत्र घटता जा रहा है। टैरेटरी को लेकर बढ़ते संघर्ष से बाघ-बघेरों का कुनबा अपने की घर में घुट रहा है। मानवीय दखल और खनन ने प्रकृति की अमूल्य धरोहर बाघ परिवार को संकट में ला दिया है। सरिस्का में मानवीय दखल खत्म नहीं हो पाने से बाघ नई ठौर तलाशने को मजबूर हैं।

हरिओम शर्मा वरिष्ठ पत्रकार

वन्यजीवों के कुनबे में विस्तार दूसरी ओर घट रहा वन क्षेत्र

गत दिनों पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट में भी चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। खासकर प्रदेश के वन्यजीव अभयारण्यों के वन क्षेत्र में कमी भी चिंता को बढ़ाने वाली है। रिपोर्ट में सरिस्का व रणथम्भौर सहित प्रदेश के अनेक अभयारण्यों व वन क्षेत्रों में आई कमी का उल्लेख किया गया है। एक तरफ वन्यजीवों के कुनबे में निरंतर विस्तार तो दूसरी तरफ वन क्षेत्र का घटते जाना जिम्मेदारों के स्तर पर बड़ी लापरवाही का संकेत है।

मानवीय दखल का सीधा असर वन्यजीवों के व्यवहार, आहार व आवास पर

बाघ-बघेरों के कुनबे में निरंतर विस्तार के चलते अभयारण्यों में आए दिन वन्य जीवों के शिकार और हादसों में मौत के समाचार वन्यजीव व पर्यावरण प्रेमियों को आहत करने वाले हैं। जंगल में मानवीय दखल का सीधा असर वन्यजीवों के व्यवहार, आहार व आवास पर पड़ रहा है। यही कारण है कि बिल्ली प्रजाति का अद्भुत जीव टाइगर और अन्य हिंसक जीव अब आबादी में घुसने से भी परहेज नही कर रहे। अलवर, जयपुर व अन्य शहर सहित गांव-कस्बों से आए दिन बाघ-बघेरों की घुसपैठ के समाचार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। राजस्थान में रणथम्भौर हो या सरिस्का अथवा अन्य वन्यजीव अभयारण्य, हर तरफ से वन्यजीवों का असामान्य व्यवहार मनुष्य के लिए चेतावनी से कम नहीं है। यदि समय रहते सरकार और वन विभाग की ओर से वन्यजीवों हैबिटॉट और प्रबेस पर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति भयावह होने से इनकार नहीं किया जा सकता।

गांवों के विस्थापन को लेकर सरिस्का फिर चर्चा में

दो दशक पहले बाघ विहीन हुआ सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य अब फिर आबाद हो चुका है और यहां बाघों का कुनबा दो दर्जन से ज्यादा पहुंच चुका है। बाघ व बघेरे के शावकों के जन्म की सौगात दे रहा सरिस्का और रणथम्भौर अभयारण्य में बाधों की दहाड़ की गूंज से वन्यजीव प्रेमी आल्हादित हैं। देश व प्रदेश के वन्यजीव अभयारण्यों से लगातार मिल रही वन्यजीवों के कुनबे में निरंतर वृद्धि के समाचार मानव जीवन व पर्यावरण की दृष्टि से बेहद सुखद है। लेकिन वन्यजीवों की बढ़ती संख्या के चलते अब सरिस्का से गांवों का विस्थापन जरूरी हो गया है। 1632 वर्ग किलोमीटर में फैला सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य में 29 गांव बसे हुए हैं। केन्द्र से लेकर राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर सरिस्का में बसे गांवों के जल्द विस्थापन को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं, लेकिन करीब डेढ़ दशक के प्रयासों के बावजूद भी कोर एरिया में बसे 10 में से मात्र 5 गांवों का ही अभी तक विस्थापन हो पाया है। बाघ परियोजना क्षेत्र में लंबे समय से बसे हुए गांव-गुवाड़ों का विस्थापन न हीं हो पाने से बाघ एवं अन्य वन्यजीवों के लिए टैरिटरी का संकट खड़ा होने लगा है।

बाघ लापता मामले में रणथम्भौर अग्रणी

टाइगर रिजर्व में बाघों के लापता होने का सिलसिला भी कम चर्चा में नहीं है। बाघ-बाघिनों के लापता होने के मामले में प्रदेश का रणथम्भौर अभयारण्य सबसे आगे है। वर्तमान में रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में 13 बाघ लापता बताए जाते हैं। जानकारी के अनुसार लापता बाघों में 9 नर एवं 4 मादा बाघ हैं। वन विभाग भी लापता बाघ मामलों में दिग्भ्रमित सा ही नजर आता है। हालांकि मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में दो शावकों के कोई साक्ष्य नहीं मिलने से भी जिम्मेदार असमंजस में हैं। इसी तरह सरिस्का अभयारण्य से बाघ एसटी-13 भी लापता है। वैसे देखा जाए तो सरिस्का से लापता के मामले में एसटी-13 पहला ही है। लेकिन रणथम्भौर में बाघों का बढ़ता कुनबा और उसके अनुरूप उनके विचरण का क्षेत्र कम पडऩे से बाघों का अभयारण्य की सीमाओं से बाहर निकलने का सिलसिला नहीं थम रहा है। हाल ही यहां के दो युवा बाघ टी-132 व टी-136 टैेरेटरी की तलश में भटक रहे हैं। 12 अगस्त को बाघ टी-136 गंगापुर के लालपुर उमरी क्षेत्र के पहाड़ पर लगे वन विभाग के फोटो ट्रेप कैमरे में कैद हुआ था, वहीं बाघ टी-132 का हाड़ौती के वन क्षेत्र में विचरण बना हुआ है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और राजस्थान पत्रिका के रीजनल एडीटर रहे हैं)

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Vivek Mishra
Vivek Mishra
2 years ago

प्रकृति के संरक्षण में ही मानव जाति का संरक्षण है । मनुष्य इससे अलग हटकर अपने को बचा नहीं सकता ।

श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

मनुष्य की बढ़ती आबादी ने वन्य जीवों की शरण स्थली में घुस पैठ,आम बात होती क्या रही है। देश के जंगलों में आलीशान कोठियां बनती जा रही है। इनसे वन्य जीवों का चोरी छिपे शिकार होनी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकारें जनता की रोजी रोटी और राजनैतिक स्त्रियां के कारण आसन्न है। इनका ध्यान वन्य जीवों के संरक्षण की प्राथमिकता में नहीं है। लेखक ने वन्य जीवों के आबादी में घुस पैठ का सही चित्रण किया है।