-शैलेश पाण्डेय-

यह उसके खेल कॅरियर में जीवन मरण के क्षण थे क्योंकि 35 वर्ष की उम्र किसी भी खेल विशेषकर फुटबाल में किसी खिलाड़ी के पक्ष में नहीं मानी जा सकती। इसीलिए निश्चित रूप से लियोनाल मैसी के लिए महान डियागो मेराडोना जैसा कद हासिल करने का यह आखिरी मौका था। लुसैल स्टेडियम में रविवार रात पूरे 120 मिनट मैसी ने ऐसे बिताए मानो फिर यह समय नहीं लौटने वाला और अर्जेन्टीना को विश्व चैम्पियन का वह गौरव दिला दिया जिसका उसे 36 साल से इंतजार था। अर्जेन्टीना फिर विश्व चैम्पियन बने इसका इंतजार करते मेराडोना इस दुनिया से विदा हो गए। यदि मेराडोना जीवित होते तो शायद रविवार को सबसे खुश होने वाले इंसान वही होते। हालांकि जब मैसी ने करीब 15 वर्ष पूर्व 2006 में करियर का पहला विश्व कप मैच खेला था तब सभी फुटबाल प्रेमियों विशेष अर्जेन्टीना वासियों को लग गया था कि इसमें वह बात है जो देश को विश्व कप जिता सकता है। मैसी ने अपने लम्बे करियर में सभी कुछ हासिल किया। पूरी दुनिया में उसके कलात्मक और जादुई खेल का डंका बजा। वह जिस क्लब के लिए खेला एक से एक खिताब उसकी झोली में डाले लेकिन फुटबाल के दीवाने अपने देश के लिए विश्व कप लाने का वह जो सपना पाले था वह उससे दूर ही रहा। लेकिन वर्षों की तपस्या आखिर 2022 में जाकर पूरी हुई और उसने फ्रांस के एमबापे की कठिन चुनौती को दरकिनार करते हुए वह कर दिखाया जिसके लिए इतिहास उसे वैसे ही याद करेगा जैसा पेले, मेरोडोना या जिनेडिन जिडान को याद करता है।

वास्तव में यह एक के लिए सौभाग्य और दूसरे के लिए दुर्भाग्य के क्षण थे। जहां मैसी हीरो बनकर उभरे वहीं एमबापे फाइनल में हैटटिक बनाने के बावजूद फ्रांस को वह गौरव नहीं दिला सके जो ब्राजील के नाम है। फ्रांस पिछला विजेता था और उसके पास 1958 और 1962 में लगातार दो विश्व कप जीतने वाले ब्राजील की बराबरी करने का मौका था। पेनल्टी शूट आउट से पहले तक उसकी पूरी उम्मीदें भी थीं। लेकिन यह फाइनल मैसी का था। मैसी ने पूरे मैच में बूढे पैरों के दम पर अपने खिलाड़ियों को लगातार उर्जा वान बनाए रखा। 2-0 की बढ़त को खेल समाप्ति से दस मिनट पूर्व गंवाने के बावजूद मैसी ने हौसला नहीं खोया और अपने फारवर्ड के लिए हर वह अवसर बनाए जिसकी वे कल्पना कर सकते थे। वहीं एमबापे खुद अपने दमखम पर जूझ रहे थे और जब भी उन्हें अपना खेल कौशल दिखाने का मौका मिला उसने दिखा दिया कि वह गोल्डन बूट के हकदार क्यों हैं।

लेकिन यहां बात मैसी की हो रही है जिसने मैदान में एक ऐसे उमंग से भरे मासूम बच्चे की तरह हर बार दौड़ लगाई जो अपने अभिभावक से हाथ छुड़ाने के बाद भागता है। और आखिर मैसी ने वह सपना सच कर दिखाया जिसका उसने फुटबाल का पहला सबक सीखते वक्त देखा था। पूरे विश्व कप के दौरान विशेषकर नाकआउट में उसने प्रिक्वार्टर फाइनल से लेकर जो फाइनल तक का सफर किया वह किसी रिले रेस के उस धावक की तरह था जिस पर अतिम लेग में टीम को जिताने का दारोमदार होता है।

अंततः मैसी ने विश्व कप जीतने के साथ दो बार गोल्डन बॉल हासिल करने वाले पहले खिलाड़ी बनने का गौरव भी हासिल किया। आखिर यह उनके फुटबाल कॅरियर का उत्कर्ष और विस्तृत खेल जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार भी है। हालांकि यदि उन्होंने विश्व कप नहीं भी जीता होता तो भी सर्वकालिक महान खिलाडियों में शुमार होते लेकिन विश्व कप जीतने की बात ही अलग है । यह आप किसी लेटिन अमरीकी विशेषकर ब्राजील और अर्जेन्टीनी से पूछ कर देख लो। इसलिए फुटबाल प्रशंसकों को अब उन्हें सर्वश्रेष्ठ कहने में कोई लाग लपेट करने की जरुरत नहीं पड़ेगी ।


















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15 देशों की बहतरीन टीमों से लड़ कर टॉप पर आना बहुत बड़ी उपलब्धि है जो मैसी को एक महान खिलाड़ी बनाती है।
वो उसका हकदार भी है।
आपने सही कहा। विश्व की सबसे बडी प्रतियोगिता में टॉप पर रहना ही अपने आप में महान उपलब्धि है।