मित्रता , मांगली खुर्द और चाय

यदि मित्र समय पर काम ना आवे तो फिर मित्र क्यों और कैसा मित्र ? केवल कहने भर के लिए या दावा करने के लिए मित्रता नहीं होती । यदि मित्र हैं और सच्चे मित्र हैं तो दावे से ऊपर उठकर गाढ़े और कठिन समय में काम आने का भाव भी आपके भीतर होना चाहिए । नहीं तो दुनिया में बहुतेरी बातें हैं और बातें करने के लिए मित्रता है तो कोई खास बात नहीं है ।

rose garden
रोज गार्डन, जयपुर का रात का दृश्य फाइल फोटो

– विवेक कुमार मिश्र-

डॉ. विवेक कुमार मिश्र

मित्रता एक भरोसे का नाम है । केवल मित्र – मित्र करने से न मित्रता होती न मित्रता का दिखावा करने से मित्रता होती है। जीवन के अन्य कार्य विस्तार की तरह मित्रता जीवन को व्यापक और जीने लायक बनाती है । यह अक्सर देखने में आता है कि लोग बाग मित्रता का दावा करते रहते हैं । जब तक यह दावे टूटते हैं और छूटते भी रहते हैं फिर कैसे माना जाए कि आपकी मित्रता सच्ची है । या यूं ही नाम गिनाने की है यदि मित्र समय पर काम ना आवे तो फिर मित्र क्यों और कैसा मित्र ? केवल कहने भर के लिए या दावा करने के लिए मित्रता नहीं होती । यदि मित्र हैं और सच्चे मित्र हैं तो दावे से ऊपर उठकर गाढ़े और कठिन समय में काम आने का भाव भी आपके भीतर होना चाहिए । नहीं तो दुनिया में बहुतेरी बातें हैं और बातें करने के लिए मित्रता है तो कोई खास बात नहीं है ।
पिछले दिनों एक यात्रा पर निकला साथ में एक सहकर्मी रामलक्ष्मण सैनी जिन्हें लेकर चल दिया । यात्रा एक उद्देश्य एक पथ पर थी इसलिए साथ हो जाने और साथ चल देने में कोई खास बात नहीं थी । पर इस यात्रा में एक बात छुपी हुई थी जो विशेष मायने रखती है कि आप यात्रा में हैं तो अपने लोगों को अपने साथ के लोगों को याद करते चलते हैं तो यात्रा सुखद और प्रीतिकर बनती है । इस यात्रा में कुछ इसी तरह के दृश्य टुकड़े जुड़ते चले गए । जो यात्रा को सुखद बनाने के लिए काफी है और भाव को कहीं गहरे रेखांकित करने के लिए ऐसे टुकड़े विशेष महत्व रखते हैं । कि आज जब किसी के पास समय नहीं है किसी के लिए कोई एक क्षण रुकना नहीं चाहता । यदि कोई आपके लिए समय निकाल रहा है तो बड़ी बात है । इस बात का मूल्य विशेष हो जाता है कि वह आपके लिए समय निकाला और यह भी इस तरह कि आपके स्टेटस को देख कर कि आप जयपुर में हैं । आपका मित्र जयपुर में है सब काम धाम छोड़कर कम समय में से समय निकालकर आप जहां होते हैं वहां चाय पीने आ जाता है । चाय की कोई दुकान नहीं होती तो सरस पार्लर पर चलकर चाय पीने की बात होती है और चाय नहीं मिलती यहां जलेबी और पनीर पकोड़ा मिलता । जिसे चाव से खाकर मित्र एक दूसरे से विदा हो लेते हैं । मित्रों की दुनिया ऐसी होती है कि थोड़ी देर का साथ … उर्जा से , उत्साह से , और रास्ते की सारी थकान से दूर कर देता है । मित्र समझाते हुए कहता है कि सीट बेल्ट लगा कर आराम से गाड़ी चलाना । जल्दबाजी ठीक नहीं है । साइरस मिस्त्री की दुर्घटना के बाद राह चलते चिंता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है । हर किसी को यह चिंता सताने लगी है । जब आप यात्रा पर होते हैं तो आपसे ज्यादा आपकी चिंता मित्र कर रहे होते हैं । यह दुनिया भी मित्रों के होने से ही सुंदर लगती है । अपने अस्तित्व को गहरी रेखांकित करती है ।
यहां से यानी जयपुर से बाहर निकल गए हैं कि घर की दुनिया का फोन आ जाता है कि रास्ते में चाकसू रुक जाना । चाय पी कर निकल जाना । भैया बोल रहे हैं कि खाकर और चाय पी कर निकल लेंगे । समय हो तो रुक जाना । चलते चलते चाकसू बात कर ली जाती है । जयपुर से निकलते ही चाकसू कस्बे नुमा छोटा शहर है । ठीक है देर हो रही है पर चाय पीकर ही निकलेंगे । यह तय हो जाता है और चाकसू आते ही घर पर चाय तैयार मिलती है । चाय और चाय के साथ बातों के बीच बचपन और आज के दिन हवा में तैरने लगते हैं । रात गहराने लगी है । इसलिए बिना देर किए ही बिना किसी और औपचारिकता की चाकसू से चाय पीकर हम लोग निकल लेते हैं । गाड़ी में रामलक्ष्मण जी का साथ और गाने एक साथ बजते रहते हैं । लगातार हम लोग मंजिल की ओर अपने समय के हिसाब से बढ़ते जा रहे हैं कि इसी बीच स्टेटस को देख कर रामलक्ष्मण जी के मित्र धन्नालाल का फोन आ जाता है । साथी ! कहां हो और कहां से कहां जा रहे हो इधर से रामलक्ष्मण जी कहते हैं कि जयपुर आया था और अब जयपुर से कोटा की ओर लौट रहा हूं । अरे ! सीधे – सीधे मत चले जाना । यहां आ जाओ । साथ चाय पिएंगे । निकल मत जाना । बहुत दिनों बाद इधर से जाना हो रहा है । रास्ते में ही हो रुक जाओ । घर आ जाओ । चाय पिएंगे । रामलक्ष्मण जी ने पूछा क्या करें सर । मानता ही नहीं । चाय पीने की जिद कर रहा है । मित्र है । कैसे मना करें । मैंने कहा मना करने की जरूरत नहीं है । चलिए मित्र की चाय पी ली जाए । देर हो रही है पर मन भी तो रखना है इतनी रात हो गई कोई मित्र राह में खड़ा है । चाय पिलाने के लिए यह क्या कम है ? चलेंगे राम लक्ष्मण जी । चाय पिएंगे और देखते – देखते गाड़ी को मित्र के गांव मांगली खुर्द के लिए मुख्य सड़क से 3 किलोमीटर दूर है चल दिए । अंधेरे में गांव की ओर गाड़ी से उजास करते चले जा रहे हैं । रात होते गांव के लगभग सब लोग सो जाते हैं । यहां भी मांगली खुर्द में अंधेरा सो जाने का था । पर धन्ना लाल जी अपने घर में जाग रहे थे । प्रतीक्षा कर रहे थे । गाड़ी के रुकते ही दौड़कर आ गए । एक दूसरे को देखकर मित्र की आंखें चमक उठी । धन्नालाल किसान हैं और मित्र प्रोफेसर । यहां चाय पीना और चाय पिलाने की बात जीवंत हो उठती है कि एक दूसरे का इतना ख्याल भी रखा जा सकता है । यहां यह सीख मिलती है कि मित्रता को कैसे निभाया जाए । देर हो रही थी । रास्ता दूर है । रात का समय है । यह जानते हुए धन्ना लाल जी ने बिना देर किए चाय बनवाई । हम चारों चाय पीते हैं । इस बीच मित्र की बारह तेरह साल की बेटी पढ़ाई कर रही थी । उसको पढ़ते देख कर लग रहा है कि वह पढ़ाई की कीमत को समझती है । बच्चों में इस तरह की लगन बहुत कम देखने को मिलती है । इसे देखते यह कहना पड़ रहा है कि बिटिया पिता के सपने को पूरा करेगी।
धन्नालाल की चाय पीकर हम लोग निकले । बाहर गाड़ी तक धन्नालाल छोड़ने आए । यह हिदायत देते हुए कि धीरे-धीरे जाना । मांगली खुर्द की चाय हमेशा याद रहेगी । मित्रता के लिए दुर्गम राह में भी रुक कर चाय पीना कितना सुकून देता है । मांगली खुर्द से निकलते ही राम लक्ष्मण के छोटे भाई का फोन आ गया । इधर से जा रहे हो तो घर से होते जाए । रामलक्ष्मण जी ने बोल दिया कि आ रहे हैं । मांगली खुर्द से 5 किमी दूर पर बड़ौदिया गांव दूसरी तरफ पड़ता है । जो राम लक्ष्मण जी का गांव है । रात काफी हो चुकी है । गांव के हिसाब से सब सो गए हैं । हो सकता है कि एक नींद निकाल लिए हों । पर रामलक्ष्मण के घर पर उनके पिताजी – माताजी और छोटा भाई प्रतीक्षा कर रहा था । देखते ही खुशी के आंसू बह निकले । सभी इस बात को लेकर खुश थे कि घर आ गए । थोड़ी देर के लिए ही सही । आ गए । मन को तसल्ली मिल गई । फिर बड़ौदिया से कोटा के लिए गांव की चाय और शिकंजी पीते चल दिए । मन में सुकून के गाने बज रहे थे । केवल और केवल इसलिए कि राह चलते आसपास की अपनी दुनिया से मिलते चलें । मित्रों के मन का सम्मान करते चलें । उनकी चाय पीते हुए चलें । यह सफर आराम से कट जाएगा । इसी का नाम तो दुनिया है । यह दुनिया मित्र प्रसंग में चाय के साथ बढ़िया से कट जाती है ।
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एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी

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डॉ. रमेश चंद मीणा
डॉ. रमेश चंद मीणा
3 years ago

मित्रता का भाव लाजवाब है….. यात्रा वृतांत के साथ लेखक ने उसे और जीवंत बना दिया।उत्कृष्ट…….