तमन्ना थी बचपन से परवाज़* की। जब उड़ने को आए तो पर कट गए।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

कई मोड़ आए मगर कट गए।
इरादे थे पुख़्ता सफ़र कट गए।।
*
अमीरों के महलों की तामीर* में।
ग़रीबों के दस्ते हुनर कट गए।।
*
चलो उनकी यादों से कुछ तो हुआ।
चलो अपने शामो सहर कट गए।।
*
तमन्ना थी बचपन से परवाज़* की।
जब उड़ने को आए तो पर कट गए।।
*
अना* अपने घर में ही रखिए जनाब।
अना में हज़ारों के सर कट गए।।
*
हमें शौक़ जुगनू पकड़ने का था।
ॲंधेरों के यूॅं ही सफ़र कट गए।।
*
फ़रिश्तों ने फिर जाने क्या लिख दिया।
दुआओं के सारे असर कट गए।।
*
फ़सीलें* तहफ़्फ़ुज़* की ऐसी उठीं।
छतों से छतें घर से घर कट गए।।
*
जो सर पर रहे बन के साया फ़िगन*।
वो ऑंगन से “अनवर” शजर कट गए।।
*

तामीर*निर्माण
अना* बेजा ग़ुरूर
परवाज़* उड़ान
फ़सीलें* ऊंची दीवारें परकोटे
तहफ़्फ़्ज़* सुरक्षा
साया फिगन* छत्र छाया

शकूर अनवर

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D K Sharma
D K Sharma
2 years ago

बहुत ख़ूब। शकूर अनवर साहब की शायरी में मौलिकता है।