
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
कई मोड़ आए मगर कट गए।
इरादे थे पुख़्ता सफ़र कट गए।।
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अमीरों के महलों की तामीर* में।
ग़रीबों के दस्ते हुनर कट गए।।
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चलो उनकी यादों से कुछ तो हुआ।
चलो अपने शामो सहर कट गए।।
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तमन्ना थी बचपन से परवाज़* की।
जब उड़ने को आए तो पर कट गए।।
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अना* अपने घर में ही रखिए जनाब।
अना में हज़ारों के सर कट गए।।
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हमें शौक़ जुगनू पकड़ने का था।
ॲंधेरों के यूॅं ही सफ़र कट गए।।
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फ़रिश्तों ने फिर जाने क्या लिख दिया।
दुआओं के सारे असर कट गए।।
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फ़सीलें* तहफ़्फ़ुज़* की ऐसी उठीं।
छतों से छतें घर से घर कट गए।।
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जो सर पर रहे बन के साया फ़िगन*।
वो ऑंगन से “अनवर” शजर कट गए।।
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तामीर*निर्माण
अना* बेजा ग़ुरूर
परवाज़* उड़ान
फ़सीलें* ऊंची दीवारें परकोटे
तहफ़्फ़्ज़* सुरक्षा
साया फिगन* छत्र छाया
शकूर अनवर
बहुत ख़ूब। शकूर अनवर साहब की शायरी में मौलिकता है।