
-बृजेश विजयवर्गीय-

(पर्यावरण एक्टिविस्ट)
बढ़ती जनसंख्या व जंगल कटने के कारण पर्यावरणीय समस्या सामने है। धरती का स्वास्थ्य बिगड़ा तो हमारा भी बिगड़ेगा। वन्यजीव ही नहीं पेड़ पौधों की भी अनेक प्रजातियां विलुप्त हो रहीं हैं। केवल आम जनता पर्यावरण को नहीं सुधार सकती। इसके लिए सरकार को पर्यावरण नियमों का गंभीरता से पालन कराना होगा, वोट बैंक के लालच को त्यागना ही होगा। अन्यथा महामारियों का सामना करना पड़ेगा जिससे मानव प्रजातियां भी खतरे में आ जाऐंगी। पर्यावरण संरक्षण की भावना को शिक्षा प्रणाली में ही अनिवार्य रूप से डालना होगा। विनाश की गति स्थानीय भी है और विश्व व्यापी भी। जरूरत है जल, जंगल और जमीन बचेगी तो जन बचेंगे। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड यानी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के ताजा आंकड़ों से सावधान हो जाना चाहिए। इन आंकडो के मुताबिक 1970 से लेकर अब तक वन्यजीवों की आबादी करीब 69 प्रतिशत घट गई है
जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन, जेडएसएल के निदेशक एंड्रयू टेरी का कहना है, यह गंभीर कमी…बताती है कि प्रकृति उधड़ रही है और प्राकृतिक दुनिया खाली हो रही है।
पांच दशक में दुनिया के दो तिहाई जंगली जीव खत्म हो चुके हैं। दुनिया भर में जंगली जीवों की आबादी पिछले 50 वर्षों में दो तिहाई से ज्यादा घट गई है। कटते जंगलों और कचरे से भरते महासागरों से प्रकृति के कई हिस्से मिट रहे हैं। जल से लेकर जमीन तक वन्यजीवों की रिहाइश हर जगह खतरे में है।
यदि हम अकेले कोटा शहर को ही देखें तो पांच दशक की स्थिति का पता चले जाएगा। अकेले शहर में किशोर सागर तालाब से स्टेशन तथा माला रोड पर घने पेडो के झुरमुट थे। इन दशकों को सैकाडों पेड़ काट दिए गए और कांक्रीट के जंगल उग आए। अभी भी जो पेड़ बचे हैं उनकी वजह से नए शहर और स्टेशन इलाके के तापमान में दो चार डिग्री सेल्सियस का अंतर बना रहता है। इस महत्वपूर्ण तथ्य के बावजूद हम नहीं संभल रहे है और हरियाली को खोते जा रहे हैं। पिछली सर्दियों में ही कोटा सबसे प्रदूषण शहरों में शुमार हो चुका है। यहां का एक्यूआई राजस्थान में भिवाडी के बाद दूसरे नंबर पर था।
पिछले पांच वर्ष में कोटा और उसके आसपास के इलाकों में पाए जाने वाले पक्षियों की संख्या में बहुत कमी आई है और इसके लिए हमारा प्रशासन ही जिम्मेदार है। चंद्रेसल रोड के साथ साथ बहने वाला नाला पहले कच्चा था और उस के किनारे कई तरह के पेड़ और झाड़ियां थी। इन पेड़ों पर बया पक्षी के घोंसले होते थे जो पेड़ों के कटने से विलुप्त हो गए। इसी नाले में मगर भी दिख जाते थे और बगुले, जलमुर्गी, किंग फिशर आदि कई पक्षी रहते थे, वो सब अब पता नही कहां चले गए। उम्मेदगंज पक्षी विहार के आसपास भी कॉलोनियां काटी जा रही हैं जिस से यहां पाए जाने वाले सारस और अन्य पक्षी भी गायब हो गए हैं। बंधा धरमपुरा में भी दुर्लभ पक्षी दिखते थे वहां भी कॉलोनी और नई सड़क निर्माण के कारण ये पक्षी अब वहां नहीं दिखते।
ये धरती सभी जीव धारियों को उचित आवास मुहैया कराती थी लेकिन मानव की बढ़ती दखलंदाजी से बहुत से जीव अब दिखाई नही देते। अब सारी पृथ्वी पर आदमी ही आदमी रहेंगे।