
बढ़ते कोचिंग सेंटर और बढ़ती आनलाइन शिक्षा ने अब जो स्वरूप बदला है उससे तो यही लगता है कि आने वाला कल फिर गुरु शिष्य परम्परा की ओर अग्रसर हो रहा है।जो अच्छे गुरु होंगे वहां अध्ययन के रुझान वाले बच्चे जाएंगे। सरकार की मंशा भी ऐसी ही नज़र आती है इसलिए स्कूल कालेज के निजी करण पर ज़ोर दिया जा रहा है। भविष्य में आनलाइन केन्द्रों और कोचिंग सेंटरों के शिक्षक आपको सम्मानित होते नज़र आएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।ये बदले हुए गुरु ,यह सत्य है कि देश को प्रतिभावान छात्र-छात्राएं तो देते हैं और यकीनन देते रहेंगे किंतु कितने प्रतिशत प्रतिभा सृजित करेंगे ?
-सुसंस्कृति परिहार-
हर बार की तरह शिक्षक दिवस हम फिर मनायेंगे।विकर्षक अपेक्षा करेंगे कि सरकार हमारा सम्मान करें।छात्र छात्राएं हमारा सम्मान कर हमारा गुणगान करें। वस्तुत: ये अपेक्षा कभी वास्तविक शिक्षक नहीं करते उन्हें तो स्वाभाविक तौर पर समाज समादृत करता ही है उनके छात्र ऊंचाइयों को छूकर उनका ही नाम जगत में रोशन करते रहते हैं।शिक्षक का यही सबसे बड़ा पुरस्कार होता है।
दार्शनिक, चिंतक,शिक्षक रहे हमारे विद्वान राष्ट्रपति डा०सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का चलन 05 सितंबर 1962से प्रारंभ हुआ। इससे पूर्व गुरु पूर्णिमा को ही गुरुओं का वंदन और अभिनंदन होता रहा है जिसे सरकार नहीं बल्कि में समाज की परिपाटीऔर दायित्व माना गया। जबसे सरकारी सम्मानों का सिलसिला चला है कुछ प्रारंभिक वर्षों को छोड़ दें तो यह सम्मान भी अन्य सम्मानों की तरह कठघरे में खड़ा है। वास्तविक शिक्षा को समर्पित शिक्षक की जगह लम्पट,चापलूस शिक्षकों का सम्मानित किया जाना इस सम्मान की तौहीन करता है। अब शिक्षक से ही कहा जाता है कि वे अपनी फाइल स्वत: ही पेश करें। यहीं से खामियों का सिलसिला शुरू हो जाता है। सम्मान का भूखा शिक्षक अपने कर्तव्य को छोड़ इस होड़ में लग जाता है। शिक्षकीय आचरण के ख़िलाफ़ फर्जी सर्टिफिकेटों के लिए हर तरह से गिर जाता है।भारी भरकम फाईल पर वजन भी ज़रुरी होता है। बड़ी मशक्कत के बाद दो चार साल व्यर्थ करने पर जो सफलता मिलती है वह फूला नहीं समाता।उस सम्मान का भरपूर फायदा लेता है।
इसमें गलती सिर्फ शिक्षक की नहीं सरकार ही उन्हें इसके लिए प्रेरित करती है। क्या यह नहीं हो सकता कि सरकार जिला स्तर पर समाज सेवियों की एक कमेटी गठित कर उसकी राय लेकर ही आगे बढ़े जहां शिक्षक कार्यरत है उस क्षेत्र के पालक और विद्यार्थियों की राय भी ली जाए। सिर्फ रिजल्ट और प्रमाण पत्रों को देखकर ही आकलन न हो। जैसा कि अन्य शिक्षकों को सम्मानित करने वाले संगठन करते हैं। वैसे एक बात बिल्कुल साफ अब शिक्षा कोई मिशन नहीं रहा वह पूरी तरह व्यवसाय में तब्दील होता जा रहा है अब तो नन्हे बच्चों को भी कोचिंग क्लास भेजा जा रहा है निजी संस्थान ज़रुर अच्छी मेहनत करते हैं लेकिन यह गरीब भारत के सभी बच्चों के नसीब में नहीं होती।
बढ़ते कोचिंग सेंटर और बढ़ती आनलाइन शिक्षा ने अब जो स्वरूप बदला है उससे तो यही लगता है कि आने वाला कल फिर गुरु शिष्य परम्परा की ओर अग्रसर हो रहा है।जो अच्छे गुरु होंगे वहां अध्ययन के रुझान वाले बच्चे जाएंगे। सरकार की मंशा भी ऐसी ही नज़र आती है इसलिए स्कूल कालेज के निजी करण पर ज़ोर दिया जा रहा है। भविष्य में आनलाइन केन्द्रों और कोचिंग सेंटरों के शिक्षक आपको सम्मानित होते नज़र आएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।ये बदले हुए गुरु ,यह सत्य है कि देश को प्रतिभावान छात्र-छात्राएं तो देते हैं और यकीनन देते रहेंगे किंतु कितने प्रतिशत प्रतिभा सृजित करेंगे ?
यह बड़ा सवाल बना रहेगा। ठीक वैसे ही जैसा पहले गुरुकुलों में होता रहा। एकलव्य हमेशा उपेक्षित रहेंगे। ऐसी शिक्षा व्यवस्था की ओर बढ़ते भारत के कदम रोकने सरकारी स्कूल के शिक्षकों को बीड़ा उठाना होगा यही उनका देश को इस कठिन दौर में सबसे बड़ा अवदान होगा।कोरोना काल में बच्चे जिस बुरी तरह से पिछड़े हैं उसे पटरी पर लाना टेढ़ी खीर है लेकिन शिक्षक ही यह जिम्मेदारी निभा कुछ कर सकते हैं।
सम्मान और पुरस्कार की आज महत्ता घटी है शिक्षक उससे दूरी बनाकर रहें।शिक्षक और गुरु के बीच ओ तौर पर परेशान शिक्षक से ज्यादा अपेक्षाएं नहीं कर सकते।मध्यम और सामान्य वर्ग के बच्चों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इनके कंधों पर है ।यह नहीं भूलना चाहिए यही बच्चे देश की रीढ़ होते हैं। यदि ऐसा होता है तभी शिक्षक दिवस की गरिमा बरकरार रहेगी और यही डा०राधाकृष्णन जी को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी ।
(देवेन्द्र सुरजन की वाल से साभार)
आज शिक्षा और शिक्षक व्यवसायीकरण की ओर बढ़ गए हैं,जिसके पास धन है,शिक्षा उसका वरण करेगी,प्रतिभा निराश और असहाय है.गरीब,किसान मजदूर के नुमाइंदे वोट के लिए रेवड़ियां बाट रहे हैं,समाज के निचले वर्ग के उत्थान के लिए नहीं