लो आज तोड़ दिया हमने बिजलियों का ग़ुरूर। हम अपने हाथ से अपना ही घर जला आये।।

shakoor anwar 00
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

नहीं है ग़म कि बुझाने कोई हवा आये।
चिराग़ दिल का तेरी राह में जला आये।।
*
हम अपनी प्यास का मातम* नहीं करेंगे कभी।
सराब* राह में आए या कर्बला* आये।।
*
लो आज तोड़ दिया हमने बिजलियों का ग़ुरूर।
हम अपने हाथ से अपना ही घर जला आये।।
*
शबाब हुस्नो मुहब्बत हिजाब* शर्म ओ हया।
वो आज घर से जो निकले तो सब लूटा आये।।
*
बहुत दिनों से कोई दार*तक गया भी नहीं।
ख़ुदा करे कोई बस्ती में सर फिरा आये।।
*
हमें शिकस्त ए मुहब्बत* ने कर दिया ख़ामोश।
हमारे टूटे हुए दिल से क्या सदा* आये।।
*
तेरे ख़याल ने बेरब्त कर दिया “अनवर”।
ग़ज़ल कहूॅं तो तख़य्युलमें मर्सियाआये।।
*
मातम* शोक, रंज, दुख,
सराब* मरीचिका,
कर्बला*ताजिया दफ़न किए जाने का स्थान,
हिजाब* पर्दा,
दार* सूली,
शिकस्त ए मुहब्बत*प्रेम में नाकामी,
सदा* आवाज़,
बेरब्त * अस्र व्यस्त,
तख़य्युल* ख़यालों में,
मर्सिया* शोक गीत

शकूर अनवर

9460851271

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D K Sharma
D K Sharma
2 years ago

क्या खूब लिखते हैं अनवर साहब। वाह।