इन दिनों चाय…
– विवेक कुमार मिश्र-

इन दिनों चाय का अंदाज ही अलग होता
चाय आने से पहले गर्म भाप और अदरक की
खुशबू लिए ऐसे आती है कि
बस देखते ही बोल पड़ते कि
हां चाय आ गई
इन दिनों चाय भाप लिए उड़ती रहती
और हवा में अहसास बन जाता कि
चाय गर्म भाप में डूबती उड़ती चली आ रही है
जाड़े की चाय है
सुबह उठते ही चाय का ख्याल
ताजगी से, कुछ करने के भाव से रच देती
चाय भर देती है
ताजगी , उर्जा , उल्लास और उत्साह से
एक गर्माहट और कह देती है कि
अब काम धाम पर निकल जा
चाय पी लिया अब बैठे डाले समय मत काट
सुबह हो गई चाय पी लिया तो काम पर निकल जा
इस तरह बस्ती में इन दिनों चाय सभी को चलाने
और गति देने के काम पर लग गई है
चाय का साफ तौर पर संदेश रहता कि
उब खिन्नता और थकान मिटाने के बाद
चाय के साथ फिर नये सिरे से जीवन की दौड़ में
दुनियादारी के क्रम में चलते चलो….!
– विवेक कुमार मिश्र
चाय , जीवन और बातें हाल ही में सूर्य प्रकाशन मंदिर बीकानेर से प्रकाशित होकर आई है । अमेजन पर भी उपलब्ध है ।
अभी तक इस पुस्तक से संबंधित जो भी सामग्री देखी है उसको पढने के बाद लगता है कि एक चाय को केन्द्र बिन्दू में रखकर कितना कुछ लिखा गया है। लिटरेचर के साथ ही फिलोसपफी का शानदार तालमेल है।
चाय के साथ हम सबका बहुत नजदीक का रिश्ता है। हर घर में चाय बनती है । चाय लोग पीते हैं और चाय के साथ बहुत सारी बातें चलती रहती हैं। बातचीत के बहाने में भी चाय होती है ।