
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
जहाॅं भी देखो समस्या दुराचरण मित्रो।
कहीं तो जाके हो इनका निराकरण मित्रो।।
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विलुप्त हो गईं ऑंखों की मूक भाषाऍं।
नहीं रहा वो मुहब्बत का व्याकरण मित्रो।।
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कहाॅं मिला अभी सम्मान अबला नारी को।
कहाॅं रुका अभी सीताओं का हरण मित्रो।।
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चरित्रहीन हुए राजनीति के रक्षक।
बिगड़ गया है सियासी समीकरण मित्रो।।
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प्रकाश तूर पे देखा था जिसका मूसा ने।
हमारे भाग जो मिल जाये इक किरण मित्रो।।
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जब उसके रूप को लाया था ध्यान में अपने।
वो कल्पना से भी सुंदर था एक क्षण मित्रो।।
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कहाॅं पे जाऊॅंगा “अनवर” अब उसकी चौखट से।
उसी के द्वार पे जीवन वहीं मरण मित्रो।।
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तूर* एक पहाड़ जहां पैगम्बर मूसा ने ईश्वरीय प्रकाश की झलक देखी
शकूर अनवर
अबला नारी का सम्मान,मनचलों ने खूंटी पर टांग दिया है और महिलाओं संग बहसीपन पर उतर आए हैं तभी तो लड़कियों के साथ बलात्कार पश्चात हत्या जैसी जघन्य घटनाओं से अख़बार और इलेक्ट्रानिक मीडिया सुर्खियों में रहते हैं