
– डॉ विवेक कुमार मिश्र-

परिवार, समाज और सामाजिकता के केंद्र में है। एक व्यक्ति जो कुछ सीखता है उसका बहुत बड़ा हिस्सा परिवार से आता है । परिवार से ही हमारी पहचान सामने आती है। हम जो कुछ हैं उसमें परिवार का अहम रोल है क्या कर सकते हैं ? क्या कुछ कर रहे हैं ? यह सब करने की इजाजत परिवार देता है। यदि परिवार नहीं है तो आपके कृत्य का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। परिवार के सहारे ही हम अपने कदम बढ़ाते हैं। यहां से पहचान मिलती है । परंपरा समाज और संस्कृति के संदर्भ के लिए हमें परिवार को न केवल देखना पड़ता है वल्कि परिवार के संदर्भ से ही जीवन को समझने में मदद मिलती है।
परिवार परंपरा से, समाज से, जीवन से जोड़ने का काम करता है। परिवार के पीछे हमारी परंपरा हमारे जीवन का मूल सत्य और वह ताकत होती है जिसकी वजह से हमारा अस्तित्व है। पहचान संस्कार और परम्पराओं से जोड़ते हुए परिवार ही हमारे जीवन को आधार देता है।
परिवार का कोई भी रूप क्यों न हो वह चाहे संयुक्त परिवार हो या एकल परिवार हो किसी भी रूप में क्यों न हो वह समाज से सीधे जोड़ देता है। समाज के भीतर हमारी निजी पहचान सामाजिक पहचान के रूप में सामने आती है । समाज को हमें समझने की जरूरत होती है। समाज एक ठोस इकाई है। मूर्त रूप में समाज को समझने के लिए आगे आने में हमें कितने ही संघर्ष करना पड़ता है। एक एक व्यक्ति समाज की पहचान में अपने आप को शामिल कर देता है। सबकी सामूहिक शक्ति समाज के माध्यम से बोलती है। समाज के क्रिया कलापों में हमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने का जब भाव होता है तो हम स्वयं को आगे बढ़ाते हुए समाज को आगे आगे लेकर चलते हैं।
समाज की सबसे मूल्यवान इकाई परिवार है। कोई भी समय क्यों न हो परिवार और समाज की भूमिका को एक दूसरे के बगैर समझा नहीं जा सकता है । सामाजिक होने की पहली शर्त परिवार है। यहां से सामाजिक अस्तित्व का पता चलता है । परिवार की देहरी से निकलते ही हम सब समाज में आ जाते हैं और हमारा पहला सामाजिक साक्षात्कार अपने निकटतम पड़ोसी से होता है। यह पड़ोसी हमारे परिवार से जुड़ा भी हो सकता है और परिवार से इतना दूर भी हो कि पड़ोस का कोई अर्थ नहीं है। पर समाज को समझने के लिए अपने आप को जानने के लिए जब हम पड़ोस में आते हैं तो स्वाभाविक तौर पर हम सब जीवन को ही समझने का काम करते हैं। पड़ोस के साथ हमारा संवाद होना चाहिए कम से कम इतना पता रहे कि कौन हैं ? कहां से आए हैं ? क्या करते हैं ? यह एक सचेत नागरिक होने के नाते भी हमारा दायित्व है। जब हम अपने आसपास की दुनिया को देखते समझते चलते हैं तो बहुत सारी समस्याओं का समाधान स्वयं हो जाता है। आप कहीं भी चलें जाएं कितना भी सुरक्षित घेरा बना लें समस्या तो होगी ही और हर समस्या का समाधान ढूंढना शुरू कीजिए । जो सामने पहाड़ है उससे आगे जाने के लिए चलना पड़ेगा। यह कहकर काम नहीं चलेगा कि अरे मैं क्या करूं यह तो मैं कर ही नहीं सकता इसे कोई और कर ले। यदि इस मुश्किल काम को कोई और कर सकता है तो फिर आप क्यों नहीं कर सकते। किसी और पर टालने की जगह आप स्वयं आगे बढ़ कर देखें समाधान भी मिलेगा और कुछ कर पाने का सुख। आत्म विश्वास बढ़ेगा। जीवन को समझने की कुछ सीख मिलेगी।
हर घर परिवार में बुजुर्ग होते हैं। बुजुर्ग पीढ़ी को समझना संभालना और उनको सुनना ही आज सबसे बड़ी जरूरत है । उनकी बातों को ध्यान से सुनिए …वह घर की चिंता से ही जुड़ी होती है। घर को व्यवस्थित करने, यदि कहीं लापरवाही हो रही है तो उसे ठीक करने कुछ ग़लत है तो उसे ठीक करने के लिए ही बुजुर्ग पीढ़ी की आंख कान लगे रहते हैं। उनके टोकने को ध्यान से सुने। ऐसा नहीं कि इनका तो काम ही है टोकना और इन्हें भी क्या सुनना कहते हुए आप निकल जाएं नहीं ध्यान से सुने ये आपकी दुनिया को बढ़िया बनाने के लिए ही कुछ कह रहे हैं।
परिवार समाज और बुजुर्ग पीढ़ी को समझने के साथ यदि सुनते हुए धैर्य के साथ आप चल रहे हैं तो कोई समस्या नहीं है । सारी समस्याओं का समाधान आपके पास है । भविष्य को भी हम तभी संभाल सकते हैं जब अपने आज के साथ अपने अतीत को लिए हुए कदम बढ़ाते हैं तो भविष्य भी मिलता है हमारा स्वप्न भी मिलता है और वह सब जो हम सब अपने लक्ष्य में शामिल कर आगे बढ़े थे । बस इन सबके पीछे सच्चाई हो। आप सच के साथ चलते चलें कोई बांधा नहीं आयेगी और यदि आती भी है तो अंत में जीत सत्य की ही होनी है फिर किस बात की चिंता।
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)