
– विवेक कुमार मिश्र-

चाय पक रही होती
एक निश्चित आंच पर चाय का उबलना
चाय को अपने रंग में लाना होता है
चाय जब रंग लेकर पक जाती है
तो चाय के साथ ताजगी स्वाद
और अपने आप में पक्के रंग का हो जाना होता है
कोई ऐसा समय नहीं
जो चाय का न हो फिर भी चाय
हर समय तैयार रहती है
सर्दी हो या गर्मी
चाय पकते हुए सदाबहार रहती
कुछ हो न हो पर चाय पर
दुनिया अपनी कथा लिए
ऐसे आती है कि अब और कुछ बाकी नहीं रहेगा
सब कुछ चाय के साथ ही जीवन रंग में
संसार को रंगता रहता है
चाय के साथ दुनिया का रंग इस तरह पक जाता कि
यहां यहीं रंग जो चाय के रंग में रंगा होता
वहीं काफी हो जाता दुनियादारी के लिए
दुनिया भी कुछ और नहीं देखती
बस चाय और चाय का रंग देखती है
जब चाय को चाय के रंग में
चाह की तरह चाह लिया गया
फिर कुछ और नहीं चाहिए
चाय के रंग में मन का रंग समाया होता
एक चाय ही तो है
जो मन की तरह हर समय
मन के उपर छायी होती है
कभी भी किसी भी समय चाय मिल सकती
कहीं भी चलें जाएं कोई भी देश क्यों न हो
कोई भी राग क्यों न हो बस सब कुछ
चाय के रंग में डूब जाता
संसार के हर रंग में चाय का रंग होता
इस तरह चाय मन पर , जीवन पर
और कथा पर ऐसे छा जाती है कि
सब चाय के रंग में ही दिखता है
और चाय निराश नहीं करती ।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)
एक चाय तो आपकी पोस्ट दूसरी गैस पर उबल रही है।????????????????