बिजलियाँ फिर मेरी तलाश में हैं। जबकि मैं आशियाॅं* जला आया।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

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दिल की दुनिया में ज़लज़ला*आया।
क्या कोई शहर में नया आया।।
*
ख़ार ओ ख़स* को लहू पिला आया।
क़र्ज़ फूलों का यूॅं चुका आया।।
*
जिस्म के फ़ासले मिटा आया।
मैं ये दीवार ही गिरा आया।।
*
चारागर* थक थका के बैठ गये।
दर्द ही बनके अब दवा आया।।
*
बिजलियाँ फिर मेरी तलाश में हैं।
जबकि मैं आशियाॅं* जला आया।।
*
उसकी सूरत ही दिल फ़रेब* न थी।
उसकी बातों में भी नशा आया।।

ऐसे हालात बन गये “अनवर”।
याद आख़िर वो बेवफ़ा आया।।
*

ज़लज़ला*भूकंप
ख़ार ओ ख़स* घास फूस काॅंटे
चारागर* चिकित्सक
आशियाॅं*घर घोंसला
दिल फ़रेब* दिल को लुभाने वाली

शकूर अनवर
9460851271

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

चारागर..थक थका के बैठ गये, दर्द ही बनके अब दवा आया ..शायर ने सूफियाना अंदाज में मनुष्य की मनोवृत्ति का किया किया है