पतंग प्यार का ज्ञान है

patang

-लक्ष्मण सिंह-

laxman
लक्ष्मण सिंह

खुला खुला आसमान
सिमटे फैलते अरमान
रुख हवा का पहचान
लालायित सब, था भान
कभी अंगड़ाई
कभी ठुमक ठुमक
उन्मुक्त सी वो लहरा रही थी
वो उड़ान भर रही थी
सर सर इधर-उधर ऊपर नीचे
आँखों में को वो तो भा गई
दिल पाने को मचल रहा गया
उसका घर आने का इंतजार था
उसकी राह में घर अनेक थे
ना जाने कौन उसे थामे था
मैं उतावला मचल रहा था
कब उन हाथों से मुक्त होगी
वो मेरी गिरफ़्त में होगी
वो स्वछंद सी हैं
स्वछंद ही रहेगी
मेरे हाथों से निकली
फिर कहीं और हाथों में होगी
आने की खुशी जाने का ग़म
यही चाहत की पतंग
न जाने किस किस की होगी
पतंग प्यार का ज्ञान है
लड़ी तो कटेगी ही
छीना-झपटी में फटेगी

लक्ष्मण सिंह

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Neelam
Neelam
2 years ago

वाह।क्या बात है।कविता की हर पंक्ति के साथ मन भी उड़ान भर रहा है।????????