
-सुनीता करोथवाल-

माँ बताती थी बचपन में
कि जब तुम छोटी थी
तब छ महीने नाना के यहाँ रही थी
और जब वापिस लौटी
तुम्हारे नाना को बुखार हो गया था
तीन दिन उन्होंने रोटियाँ नहीं खायी
मैं गर्व से भर जाती थी यह बात सुन कर
कि नाना मुझसे कितना प्यार करते हैं
नाना जैसा तो कोई नहीं दुनिया में
मैं जब भी मिलती थी उनसे लिपट जाती थी
यूँ ही बताती थी बाबा के बारे में
मेरे होने पर उन्होंने लड्डू बाँटे थे
अगर हमें कोई ऊँचा भी बोलता
वे लड़ पड़ते थे
एक प्रसाद का दाना भी सहेज कर रखते
और हमारी हथेली पर रखते थे
ये कोई सामान्य बातें नहीं थी
इन्हीं बातों ने ऊँचा रखा उनको मेरी नजरों में
हम जब भी बहुत दिन बाद मिलते थे
रो पड़ते थे
माँ बताती है अब भी
तुम्हें देख-देख जीते थे सब
और अब भी जीते हैं
चाचा, ताऊ, पापा,नानी, बुआ
हाँ बुआ ने तो अठारह साल तक
मेरी होने की लाल चूड़ियाँ पहने रखी थी
कहती थी ये दो चूड़ियाँ तेरी शादी में झड़वा दूँगी
बच्चे कितना देखते हैं बड़ों की आँखों में
कितना मानते हैं प्रेम भरी बातों को
फिर मिलवाइए ना उन्हें दादा, नाना, बुआ , ताऊ से
आखिर रिश्ते ही हमें प्रेम सिखाते हैं
हम रिश्तों से ही समर्पण सीखते हैं
अब पारिवारिक रिश्तों की गोद में बच्चे उठाने चाहिए
झूठे प्रेम के हाथों हमारे बच्चे बर्बाद हो रहे हैं।
सुनीता करोथवाल