कला और आध्यात्म का अद्भुत संगम/ महाकाल लोक कॉरिडोर

धार्मिक नगरी उज्जैन यात्रा संस्मरण  प्रथम दिन भाग  1

ujjain

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

शिव, सनातन धर्म, संस्कृति के बारे में जितना समझने की कोशिश करेंगे, उतना ही जिज्ञासा, लगाव बढ़ता जायेगा। अभी कुछ दिनों पहले ही मोदी जी ने ज्योतिष, खगोल शास्त्र ज्ञान की केंद्र, प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य, महाकाल की नगरी #उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर का उदघाटन किया है। मन में दर्शन की अभिलाषा और शिवलोक कॉरिडोर का चुम्बकत्व अपनी ओर खींच रहा था। कार्तिक मास और दर्शन का संयोग भी बन गया, नेकी और पूछ पूछ। उज्जैन के लिए तीनों मार्गों रेल, सड़क, वायु मार्ग द्वारा पहुंचने की सुविधा है, हम कोटा से ट्रेन द्वारा सायं सात बजे तक उज्जैन पहुंच गए।

निवास के लिए कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि #श्रीमहाकालेश्वर भक्त निवास में बुकिंग थी, वहीं प्रांगण में #भारतमाता मंदिर है, जहां प्रतिदिन शाम 8 बजे #वंदेमातरम् गायन के साथ आरती होती है, जिसे देख देश से जुड़ाव का अहसास होता है, बच्चों को ऐसी जगह से अवश्य रूबरू करवाना चाहिए, जिस #संस्कृति संक्रमण के दौर से आज की पीढ़ी गुजर रही है, उसके लिए अति आवश्यक, जानकारी के लिए बहुत अच्छा है। महाकाल लोक कॉरिडोर कला और आध्यात्म का अद्भुत संगम है। हम सायं आठ बजे तक फ्रैश हो चुके थे, भक्त निवास और कॉरिडोर की दीवार एक ही थी हमारे कमरे की खिड़की से ही कॉरिडोर का नजारा लाईटिंग, भीड़भाड़ दिख रहा था। जल्द ही हम भी कॉरिडोर के लिए निकल पड़े। #अशक्तजनों के लिए बैटरी चालित कार की सुविधा उपलब्ध थी। लगभग 200 मूर्तियां दीवार पर उकेरी और स्थापित की गई हैं, जिनमें #प्रसंग सहित सभी घटनाओं का #जीवंत वर्णन किया गया है। महाकाल कॉरिडोर में भगवान शिव, सती, शक्ति के धार्मिक #प्रसंगों से जुड़ी मूर्तियां और दीवारों पर उकेरी गई प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, 108 स्तंभों में कई प्रसंग यथा भगवान शिव, सती, गणेश, सूर्य, दुर्गा, सप्तऋषि, कार्तिकेय आदि देवी देवताओं से संबंध अनेक लीलाओं का वर्णन मूर्ति रूप में उकेरा गया है। कुछ प्रतिमाओं से तो नजर ही नहीं हटती। लगभग 900 मीटर लंबा महाकाल पथ बना हुआ है। तीन ओर से प्रवेश द्वार तथा द्वार पर चार विशाल नंदी प्रतिमाएं हैं। कमल कुंड, फव्वारे, रंग बिरंगी रोशनी वातावरण को और आकर्षक बना रहे हैं।

हालांकि एक आलेख में सारा #विवरण समेट पाना मुश्किल है, फिर भी प्रयास रहेगा। आगे बढ़ते हुए, तीर्थ यात्रा संस्मरण की श्रृंखला में एक और मोती पिरो दिया है। जानते हैं उस मोती के बारे में __
शमशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठं तु वनमेव च,
पंचैकत्र न लभ्यते महाकाल पुरदृते। यह (अवंतिका क्षेत्र माहात्म्य ) में वर्णित है। अर्थात् यहां पर श्मशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठ, एवं वन ये सभी पांच विशेष संयोग एक ही स्थान, सप्तपुरियों में से एक उज्जैन (अवन्तिका) नगरी में स्थित हैं, इस दृष्टि से भी इसका महत्व बढ़ जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में, उज्जैन में स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग #स्वयंभू शिवलिंग प्रमुख हैं। क्षिप्रा नदी के किनारे बसे अवन्तिका को पृथ्वी का मध्य माना जाता है। दर्शन यात्रा के प्रथम दिन शुरुआत महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शनों से ही किया। आइए मेरी इस यात्रा में शामिल होइए। जीव मात्र को मुक्ति प्रदान करने के लिए धार्मिक नगरी उज्जैन/ अवन्तिका में अवतरित, अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाले, स्वयंभू शिवलिंग देवाधिदेव भगवान महाकाल की हम आराधना करते हैं। एक #संयोग लगता है, मेरे साथ भी जुड़ गया है, ( #राज्यपाल और #रेडकार्पेट ) उस दिन पांच नवंबर 2022 को भी बिहार के राज्यपाल दर्शनों के लिए पहुंच रहे थे, हमारे सामने ही तुरत फुरत में पुलिस, मंदिर, प्रशासन तैयारी में जुटे हुए थे। जैसा कि हमें पता था, वहां मोबाइल वगैरह सभी बाहरी चीजें सुरक्षा की वजह से अनुमति नहीं थी, फिर भी सभी मोबाइल से फोटो क्लिक कर रहे थे तथा लाइव भी दिखा रहे थे। तब लगा हम भी मोबाइल साथ ले आते तो अच्छा होता, लेकिन श्रीमन (पतिदेव)) पूरे उसूलों के पक्के, उन्होंने कहा व्यवस्था में सहयोग करना चाहिए, दर्शन के लिए आए हैं तो दर्शन लाभ लीजिए। बात भी सही थी, लेकिन शाम को दोबारा जाकर, परिसर में कुछ फोटो अवश्य लिए। उस दिन फिल्म मेकर मधुर भंडारकर ने भी दर्शन किए, जैसा कि पता चला। मंदिर के ऊपर वाली मंजिल व गर्भगृह के सामने दर्शन कर बहुत अच्छा लगा, दोनों जगहों पर बहुत बड़ा बैठने के लिए स्थान बना हुआ है जहां रुक कर थोड़ी देर कोई विश्राम, ध्यान, पूजा अर्चना करना चाहे तो कर सकते हैं हमने भी किया। एक बात विशेष, विक्रमादित्य के शासन के बाद कोई भी राजा, देश प्रदेश का / प्रमुख / मुखिया यहां रात में नहीं रुक सकता, उनकी व्यवस्था शहर से बाहर की जाती है। जिसने भी यह दुस्साहस किया, वह संकटों से घिर गया, मारा गया या कुछ अनर्थ हो जाता है, क्योंकि यहां के राजा तो केवल महाकाल शिव हैं और चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य जैसा कोई हुआ नहीं।

महाकाल मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, इनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि, इनके दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही, नागपंचमी पर होते हैं। महाकाल मंदिर के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर स्थित है। जिसमें पूरा शिव परिवार प्रतिमाएं हैं। मंदिर परिसर में ही बीचों बीच प्राचीन श्री #साक्षीगोपाल मंदिर है, मान्यता है कि महाकाल शिव अपने भक्तों के साथ व्यस्त रहते हैं, तो साक्षी गोपाल आपकी सभी जानकारी/गवाही, भगवान शिव को देते हैं कि आपने प्रार्थना और दर्शन किए हैं इसलिए यहां दर्शन करना जरूरी है। #साक्षीगोपाल जी के दर्शन अवश्य करने चाहिए। पंढरपुर भगवान के दर्शन बहुत ही मनमोहक हैं। यहीं पास ही दुस्वप्नों से निवारण के लिए #स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर है, जिनके दर्शन से बुरे सपनों से छुटकारा मिलता है। #मनकामेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन प्रार्थना कर, मन में जो भी कामना होती है वह पूरी होती है। मंदिर परिसर में ही बृहस्पतेश्वर, प्राचीन लक्ष्मी नरसिंह मंदिर, गणेश मंदिर, हनुमान जी, नवग्रह मंदिर आदि सभी मंदिरों के दर्शन कर महाकाल मंदिर से बाहर आए। इस सब में लगभग ढ़ाई तीन किमी. चलना हो गया था।


पूरे भारतवर्ष में महाकाल एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहां पर ताजा चिता भस्म से, प्रातः 4:00 बजे भस्म आरती होती है (अब चिता भस्म से नहीं) इसमें पुरुषों द्वारा शरीर पर केवल एक धोती पहनी जाती है, पहले स्त्रियों को इस आरती में शामिल होना मना था अब मालूम नहीं है। हर सुबह भस्म आरती से श्रृंगार कर महाकाल को जगाया जाता है। इसकी भी एक कहानी है। एक बार शव नहीं मिलने पर पुजारी ने अपने ही पुत्र की बलि देकर उसकी चिता की राख से भस्म आरती की, उसी समय भगवान ने दर्शन दे पुत्र को जीवित किया एवं कपिला गाय के कंडे आदि अन्य सामग्री से भस्म आरती के लिए कहा। इस तरह अब यह प्रथा बंद हो गई है, पिछले कुछ समय से कपिला गाय के कंडे, पीपल, पलाश, बड़, बेर, अमलतास और शमी की लकड़ियों से बनी भस्म को कपड़े में छानकर प्रयोग किया जाता है। कहते भी तो हैं अंग भभूत रमाए। हालांकि हम लोग भस्म आरती के दुर्लभ दर्शन लाभ से वंचित रह गए, क्योंकि अब इसकी ऑन लाइन बुकिंग शुरू हो गई है। और इसकी वेटिंग लगभग एक महीने की रहती है। प्राचीन काल में संपूर्ण विश्व के #मानक समय का निर्धारण यहीं से होता था, इसलिए कालों के काल महाकाल कहा जाता है। उज्जैन का ज्योतिष, खगोल, तंत्र शास्त्र की दृष्टि से विशेष महत्व था। उज्जैन के आकाश से ही काल्पनिक #कर्करेखा गुजरती है। (क्रमशः)

मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

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Sanjeev
Sanjeev
3 years ago

वाह क्या बात है, साक्षात दर्शन करा दिए आपने, आप भारत भ्रमण पर जब भी जाएं कृपया अपनी लेखनी से हमें भी दिव्य अनुभूति करने की कृपा करें

D K Sharma
D K Sharma
3 years ago

बहुत सुंदर लेख। उज्जैन पृथ्वी का centre point या केंद्र बिंदु माना जाता है और इसीलिए यहां से काल की गणना की जाती थी। ये बहुत बड़ी विडंबना है कि भारत का ये ज्ञान, ये विज्ञान हम भूल गए और इसकी रक्षा नही कर सके। आज ग्रीनविच meantime से सारे विश्व की घड़ियां सैट की जाती हैं।