लगता है पतझड़ से तुम्हारा गहरा नाता है ।

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 वसंत 

aditya kumar
डाँ आदित्य कुमार गुप्ता

-डाँ आदित्य कुमार गुप्ता-

वसंत! मनोज के मीत !

रति के प्रिय

कौन नहीं पहचानता तुम्हें ?

तुम्हारी आहट सत्कार

भौंरे बौरे सहकार

नव तरंग उमंग उल्लसित

चहुं ओर जड़ चेतन ,

जीव अजीव आह्लादित

दिग् दिगंत में दुंदुभी बजती

जैसे महाराज की सेना

आक्रमण को आतुर

दल बल सहित,

पंचवाण लिये जन मन पर

पी पी मधुरस मनाते

जश्न जग जीत का ।

जगत से प्रीत का ।

हृदय में जगती ,जगती प्यास

मिलन मधुर आस ।

कहो तो, एक बात पूछूं

सच सच बतलाओगे

कैसे दानी हो ?

देने से पहले

सब ले क्यों लेते हो ?

अपत पेड़ पौधे

जैसे सूखे कंकाल हॅसते हों ।

लगता है पतझड़ से

तुम्हारा गहरा नाता है ।

डाँ आदित्य कुमार गुप्ता
बी-38 मोतीनगर विस्तार थेकड़ा रोड़
कोटा ।

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Neelam
Neelam
2 years ago

क्या बात है।सच ही कहा है।????????