
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
बदलते हैं जब दिन बदलती है दुनिया।
यही तौर* है जिससे चलती है दुनिया।।
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लो हाथों से अपने निकलती है दुनिया।
हमें तो फली है न फलती है दुनिया।।
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गहन पड़ गया अम्न* की बस्तियों पर।
तशद्दुद* के साये में पलती है दुनिया।।
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मैं नफ़रत का दुश्मन मुहब्बत का तालिब*।
मगर जाने क्यूॅं मुझसे जलती है दुनिया।।
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कहीं क़हर* सूरज उगलता है इस पर।
कहीं बर्फ़ बनकर पिघलती है दुनिया।।
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कहीं तेज़ बारिश कहीं क़हत साली*।
ये किसके इशारे पे चलती है दुनिया।।
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कहाँ मेरे कमज़ोर काॅंधों पे रख दी।
कहीं मुझसे “अनवर” संभलती है दुनिया।।
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तौर*तरीक़ा,
अमन* शांति,
तशद्दूद*ज़ियादती, अत्याचार,
तालिब*इच्छुक,
क़हर*गज़ब, क्रोध,
कहतसाली* सूखा, अकाल,
शकूर अनवर
9460851271