मैं नफ़रत का दुश्मन मुहब्बत का तालिब*। मगर जाने क्यूॅं मुझसे जलती है दुनिया।।

shakoor anwar 01
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

बदलते हैं जब दिन बदलती है दुनिया।
यही तौर* है जिससे चलती है दुनिया।।
*
लो हाथों से अपने निकलती है दुनिया।
हमें तो फली है न फलती है दुनिया।।
*
गहन पड़ गया अम्न* की बस्तियों पर।
तशद्दुद* के साये में पलती है दुनिया।।
*
मैं नफ़रत का दुश्मन मुहब्बत का तालिब*।
मगर जाने क्यूॅं मुझसे जलती है दुनिया।।
*
कहीं क़हर* सूरज उगलता है इस पर।
कहीं बर्फ़ बनकर पिघलती है दुनिया।।
*
कहीं तेज़ बारिश कहीं क़हत साली*।
ये किसके इशारे पे चलती है दुनिया।।
*
कहाँ मेरे कमज़ोर काॅंधों पे रख दी।
कहीं मुझसे “अनवर” संभलती है दुनिया।।
*

तौर*तरीक़ा,
अमन* शांति,
तशद्दूद*ज़ियादती, अत्याचार,
तालिब*इच्छुक,
क़हर*गज़ब, क्रोध,
कहतसाली* सूखा, अकाल,

शकूर अनवर
9460851271

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